क्या आपको पता है कि Indian Bill Market क्या हैं? ऐसे बहुत से सवाल है जो अक्सर कई लोगों को परेशान करते हैं इसका नाम सुन कर अगर आप सोच रहे है की ये money market या capital market का अंग है तो बिलकुल गलत सोच रहे है इसलिए आज हमलोग indian bill market के बारे में जानेंगे |
तो आज हम लोग इस Article में जानेंगे कि Indian Bill Market क्या हैं? What is Indian Bill Market in Hindi? के बारे में, जब कभी Banking की बात आती है तो उसमें एक नाम Indian Bill Market का भी आता है जो कि एक महत्वपूर्ण नाम है जो कि Banking Sector के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण कड़ी मानी जाती है परन्तु लोगों को इसके नामो से ऐसा लगता है की ये banking का नहीं बल्कि market का अंग है, तो चलिए हमलोग आज इसमें इसे बिस्तर से जानेंगे |
Indian Bill Market किसे कहते हैं?
April 1935 में Reserve Bank of India की Established के बाद भी देश में व्यवस्थित Bill market की स्थापना नहीं हो सकी, क्योंकि इस संबंध में आधार भूत कठिनाइयों को दूर करने में अधिक सफलता नहीं मिल पाई। जनवरी 1952 में Reserve Bank द्वारा लागू की गई “विपत्र बाजार योजना” (Bill Market Scheme) से Pre-scheduled bank व्यस्त मौसम की Monetary आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु या तो Reserve Bank को Government securities बेचकर धन प्राप्त कर लिया करते थे या इन securities के विरूद्ध Reserve Bank से loan प्राप्त कर लिया करते थे।
नवंबर 1951 में जब Reserve Bank ने Bank rate 3 प्रतिशत से बढ़ाकर 3.5 प्रतिशत कर दी, तब Reserve Bank ने यह निश्चय किया कि वह Scheduled banks से Government securities नहीं खरीदेगा, यद्यपि उन्हें securities के विरूद्ध प्रचलित Bank rate पर Loan प्रदान करता रहेगा। इसके साथ ही Reserve Bank ने साख प्रदान करने की एक नई प्रथा को भी जन्म दिया, जिसके माध्यम से Bank credit का परिणात्मक नियंत्रण किया जा सके।
जनवरी 1952 से Reserve Bank ने एक “Bill Market Scheme” चालू की जिससे कि उसकी Credit control policy का देश के उद्योगों पर बुरा प्रभाव न पड़े, तथा आवश्यक Economic activities के लिए समुचित साख उपलब्ध हो सके। इस योजना के अन्तर्गत Commercial bills के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए Reserve Bank द्वारा विभिन्न प्रकार की सुविधायें दी गई। Reserve Bank द्वारा Bill market scheme कई चरणों में लागू की गई ।
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Reserve Bank द्वारा Bill market scheme को लागु करने के लिए चरणों का विवरण
जिसका संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार से है:-
- Preliminary Stage
प्रारंभ में इस योजना के अन्तर्गत Reserve Bank ने Scheduled banks के Bank rate से 1/2 प्रतिशत कम ब्याज की दर पर ऋण प्रदान किया। प्रारंभ से Reserve Bank कीBill market scheme केवल उन्हीं Scheduled banks तक सीमित थी जिनकी जमाओं की कुल मात्रा 10 करोड़ रु० या इससे अधिक थी। योजना के अन्तर्गत प्रारंभ में Personal bills का न्यूनतम मूल्य 25 लाख रुपये का न्यूनतम अग्रिम लेना अनिवार्य कर दिया गया।Bill market को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से Reserve Bank ने borrower Banks द्वारा माँग विपत्रों (Demand Bill) को सावधि विपत्रों (Time Bill) में परिवर्तित कराये जाने पर लगने वाले stamp duty का 50 प्रतिशत भाग स्वयं वहन करना स्वीकार कर लिया।
(ii) Inclusion of Small Banks in the Scheme
1954 में Shroff Committee ने इस योजना के कार्य क्षेत्र को अधिक विस्तृत करने तथा इसके अन्तर्गत 1 करोड़ रुपये तक की जमा राशि (Deposit) वाले सभी Banks को सम्मिलित करने का सुझाव दिया। अतः जुलाई 1954 से Reserve Banks ने इस योजना के कार्य क्षेत्र के अन्तर्गत उन सभी Scheduled banks को सम्मिलित कर लिया जिन्हें 1949 के Indian banking companies act के 22 वें अनुच्छेद के अनुसार permit प्राप्त था। इस योजना से Small traders को लाभान्वित करने के उद्देश्य से व्यक्तिगत Hundies पर Minimum advance प्राप्त करने की राशि एक लाख रुपये से घटाकर 50 हजार कर दी गई तथा एक Bank द्वारा न्यूनतम अग्रिम प्राप्त करने की राशि 25 लाख से घटाकर 5 लाख रुपये कर दी गई।
(iii) रियायतें समाप्त करना (Termination of concessions)
Reserve Bank ने मार्च 1956 से मुद्दती मंडियों की आड़ में दिये जाने वाले अग्रिमों पर प्रभावशाली उधार-दर बढ़ाकर 3.1/2 प्रतिशत कर दी। इसके अतिरिक्त, Reserve Bank ने Hundi की कटौती से संबंधित आधे Stamp duty का भुगतान करना भी बंद कर दिया।
(iv) Export Bills in the scheme
23 मार्च 1963 से “निर्यात विपत्र साख योजना” (Export Bill Credit Scheme) प्रारंभ की गई जिसके अन्तर्गत Scheduled bank अपने अधिकार में होने वाले Export bills की राशि की घोषणा करने लगे तथा इस घोषणा के आधार पर ही उन्हें Reserve Bank से ऋण मिलने लगा।
Reserve Bank की नई “Bill Re-discounting Scheme”
- नवंबर 1970 में Reserve Bank of India ने एक नई योजना लागू की, जो “विपत्र पुनर्कटौती योजना” (Bill Re-discounting Scheme) कहलाती है। इस योजना के अन्तर्गत Nationalized banks सहित सभी Licensed bank को Reserve Bank से Bills की Reimbursement कराने के लिए अधिकारी मान लिया गया है।
- योजना के अन्तर्गत Reserve Bank से केवल ऐसे Commercial bills की पुनर्कटौती करायी जा सकती है, जो किसी License युक्त Bank पर लिखे गये हों या जिन पर License प्राप्त Scheduled bank की स्वीकृति हो या ऐसे Bank के हस्ताक्षर हों। “पुनर्कटौती कराये जाने वाले विपत्र” वास्तविक बिक्री के सौदे पर आधारित होने चाहिये तथा वे 90 दिनों से अधिक अवधि के नहीं होने चाहिए Export bills के संबंध में यह अवधि 180 दिन तक हो सकती है) ऐसे विपत्रों पर कम-से-कम दो विश्वसनीय हस्ताक्षर होने चाहिए।
- New bill Re-discounting scheme का उद्देश्य Indian money market में अल्पकालीन Commercial bills को लोकप्रिय बनाना है। इस योजना का Scheduled banks ने अधिकाधिक लाभ उठाया है। 30 जून 1971 को Banks द्वारा Re-discounting कराये गये Bills का मूल्य 10 करोड़ रुपये था, जो सितम्बर 1971 तक बढ़कर 25 करोड़ रुपये हो गया। जून 1974 में Re-discounting कराये गये Bills का मूल्य 274 करोड़ रुपये था, जो जून 1975 में घटकर 132 करोड़ रुपये रह गया।
- 1974-1975 में Reserve Bank ने Credit contraction की नीति का अनुसरण किया था, जिसके कारण इस वर्ष Reserve Bank ने Bills की Re-discounting में कम धन लगाया। साथ ही Scheduled banks को यह छूट दी गई कि वे Reserve Bank के अतिरिक्त Life Insurance Corporation, Unit Trust of India, General Insurance Corporation, Industrial Credit and Appropriation Corporation of India, आदि संस्थाओं से भी अपने प्रमाण युक्त Exchange bills की Re-discounting करा सकते हैं।
- Credit contraction की नीति का अनुसरण करते हुए 11 सितम्बर 1976 को Reserve Bank द्वारा घोषणा की गयी कि 1 नवंबर 1976 से Scheduled banks का “मूल पुनर्कटौती अभ्यंश” (Basic Re-discount Quota) निश्चित कर दिया जाएगा, जो 25 सितम्बर 1976 को Scheduled banks द्वारा खरीदे गये अथवा भुनाए गये Bills के मूल्य का 10 प्रतिशत होगा। 1977 के प्रारंभ में धनाभाव के कारण Scheduled banks ने Bills में अपना निवेश कम कर दिया। किंतु Insurance companies ने Bills में निवेश बढ़ाकर 16 प्रतिशत तक वार्षिक ब्याज कमाया। जून 1977 में Reserve Bank ने स्वीकृत Financial institutions के लिए Discount rate की उच्चतम सीमा 12 प्रतिशत निर्धारित कर दी।
- Bill Re-discounting scheme के अन्तर्गत Reserve Bank ने 1977-78 में 184 करोड़ रुपये तथा 1978-79 में 106 रुपये रह गया। 1979-80 में Reserve Bank ने Internal exchange bills की Re-discounting करने में 109 करोड़ रुपये लगाए, किंतु 1980-81 में वह राशि घटाकर केवल 3 करोड़ रुपये रह गई।
Reserve Bank के Bill Market Scheme की त्रुटिया
Reserve Bank भारत में Organized bill market विकसित कर पाने में अभी तक सफल नहीं हो सका है। Bank की Bill Market Scheme में कुछ ऐसी त्रुटियाँ विद्यमान हैं, जो व्यवस्थित bill market के विकास में बाधकं सिद्ध हुई हैं जो निम्नलिखित हैं : –
(1) देशी बैंकर्स की हुंडियों को योजना में सम्मिलित न किया जाना
देशी बैंकर्स द्वारा लिखी गई या स्वीकृत Hundies को इस योजना में सम्मिलित नहीं किया गया है। फलत: देशी बैंकर्स, जो Indian money market के महत्वपूर्ण अंग हैं, re-discounting की सुविधाओं का लाभ उठाने से वंचित रह जाते हैं।
(2) Demand bills को Fixed bills में बदलने की असुविधा
इस योजना से लाभ उठाने के लिए व्यापारिक Banks को अपने माँग Bill term Bills में परिवर्तित कराने होते हैं। परन्तु यह कार्य असुविधाजनक होने के साथ ही ख़र्चीला भी है।
(3) उधारकर्ता Banks के व्यवसाय की जाँच-पड़ताल:
Bills के आधार पर अग्रिम स्वीकार करते समय Reserve Bank द्वारा Commercial bank के व्यवसाय की प्रकृति की जाँच-पड़ताल अनावश्यक प्रतीत होती है। इसी प्रकार Lending bank के व्यवसाय की प्रकृति ठीक न समझी जाने पर Reserve Bank द्वारा उसके Bills की पुनर्कटौती से इंकार करना भी ठीक प्रतीत नहीं होता।
(4) सीमित क्षेत्र
अभी तक Reserve Bank की Bill market scheme व्यापार, वाणिज्य एवं उद्योग के क्षेत्रों तक ही सीमित रही है।
(5) विपत्र बाजार के विकास में विफलता
Reserve Bank की योजना द्वारा देश में व्यवस्थित Bill market का विकास नहीं हो पाया है, क्योंकि यह योजना Commercial Banks को Reserve Bank से ऋण दिलाने की व्यवस्था मात्र करती है। Bill market के विकास की वास्तविक योजना का उद्देश्य Commercial bills में एकरूपता लाना, उन पर किये जाने वाले सौदों को सुविधाजनक बनाना तथा उनके प्रयोग को बढ़ावा देना होना चाहिए।
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भारत में विकसित Bill market के अभाव के कारण क्या -क्या है?
भारत में Bill market की पिछड़ी हुई दशा के लिए निम्न घटक उत्तरदायी ठहराए जा सकते हैं:-
(1) Variety of bills
देश के विभिन्न भागों में Written bills में समरूपता का नितांत अभाव पाया जाता है। Hundies के भाषा और लेखन-विधि में इतनी अधिक विविधता है कि किसी Commercial bank के लिए यह समझ पाना कठिन होता है कि कौन-सी Hundi अनुपयुक्त है। परिणामत: National level का Hundi market विकसित नहीं हो सकता है।
(2) Cash credit priority
Commercial bank भी Bills भुनाने की बजाय नकद ऋण देना अधिक अच्छा समझते हैं, क्योंकि ऐसा ऋण कभी भी वापस माँगा जा सकता है। Cash credit को प्राथमिकता दिए जाने से Bills व्यवसाय के विकास हेतु सीमित क्षेत्र रह जाता है।
(3) Hundies पर Stamp Duty बहुत अधिक है, जिसके कारण Hundies को भुनाने की लाभदायकता कम हो जाती है।
(4) Banks Invest in Government Securities
प्रारम्भ से ही Indian Banks को जनता की liquidity preference की संतुष्टि हेतु अधिक मात्रा में Cash fund रखते हैं। अत: उन्होंने अधिकांश Investment प्रथम श्रेणी की Government securities में ही किया है, ताकि उनके Investment की fluidity बनी रहे।
(5) Lack of Issue Houses and Approved Houses
Issue House और Acceptance House Hundies को स्वीकार करके लिखने वाले को ग्राहक की economic condition की सही जानकारी दे सकते हैं, परन्तु भारत में ऐसी Institutions का सर्वथा अभाव है, जिसके कारण Bank hundies भुनाने में संकोच करते हैं।
(6) Limited refund facility
Reserve Bank की स्थापना से इस दिशा में कुछ सुधार अवश्य हुआ है, तथापि अभी तक Reserve Bank rediscounting की सुविधायें सीमित मात्रा में ही प्रदान कर सका है। Commercial bank भी Bills को Rediscounting कराने की बजाय उनके आधार पर ऋण लेना अधिक अच्छा समझते हैं, क्योंकि Money Market में किसी Bank द्वारा Billds का पुन: भुनाया जाना उसकी कमज़ोरी का चिन्ह माना जाता है।
(7) Commercial और Economic Bills में स्पष्ट अंतर का अभाव
Commercial Bank सामान्य Hundies को भुनाने में इसलिए भी हिचकिचाते हैं, क्योंकि भारत में “व्यापारिक हुण्डियों” (Commercial Bills) और “अर्थ हुण्डियों” (Accommodation Bills) के बीच कोई स्पष्ट अंतर नहीं होता। Banks को Commercial Bills भुनाने में कोई आपत्ति नहीं हुआ करती, क्योंकि ये Bills वास्तविक व्यापारिक सौदा के आधार पर लिखे जाते हैं। चूँकि Cash bill वास्तविक सौदा पर आधारित न होकर केवल ऋण-प्राप्ति के साधन-मात्र होते हैं, इसलिए Commercial Bank ऐसे Bills का भुगतान नहीं चाहते।
(8) Release of Treasury Bills
भारत में संघ और राज्य सरकारें अपनी Financial आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु Treasury Bills का निर्गमन करती हैं। वे Bills अल्पकालीन अवधि के होते हैं तथा 30 दिन से लेकर 90 दिन में परिपक्व हो जाते हैं। “Safety and liquidity” की दृष्टि से Indian Bank अपना फ़ालतू धन Commercial bills की बजाय Treasury Bills में लगाना अधिक अच्छा समझते हैं। फलत: देश में Commercial bills के प्रयोग को आवश्यक प्रोत्साहन नहीं मिल पाता है।
Bill Market के विकास हेतु सुझाव
भारत में व्यवस्थित Bill market के विकास हेतु मुख्य सुझाव इस प्रकार हैं:-
(i) देश के विभिन्न भागों में Issue houses and approved houses की स्थापना की जानी चाहिए।
(ii) Commercial bills पर Stamp duty का भार घटाया जाना चाहिए।
(iii) बड़े-बड़े Business centers पर पर्याप्त संख्या में Clearing houses की स्थापना की जानी चाहिए, जो Bills के भुगतान में ठीक वैसी ही सहायता पहुँचायें, जैसी सहायता वे Cheque के भुगतान में करते हैं।
(iv) देश में प्रचलित समस्त प्रकार की Hundies और Bills का मानवीकरण किया जाना चाहिए।
(v) Sight bills को Time bills में बदलवाने के समय लगने वाले Stamp duty में कमी की जानी चाहिए।
(vi) देश के विभिन्न भागों में बड़ी संख्या में License युक्त गोदामों की स्थापना की जानी चाहिए, जिनमें रखे गए माल की Receipt के आधार पर Commercial bank loan दे सकें।
(vii) Agricultural bills के प्रचलन को प्रोत्साहित करने के लिए खड़ी फ़सलों के आधार पर लिखे गए Bills को स्वीकृति मिलनी चाहिए तथा उनकी जमानत पर Banks द्वारा Loan दिया जाना चाहिए।
(viii) Reserve Bank की Bill market scheme के कार्य क्षेत्र में देशी बैंकर्स को भी सम्मिलित किया जाना चाहिए।
आज आपने क्या सीखा
दोस्तों मुझे आशा है कि आपको हमारा Article Indian Bill Market क्या हैं? What is Indian Bill Market in Hindi? के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी क्योंकि इसमें इसके प्रकार के बारे में भी सारी जानकारी दी गयी है जिसमे इसके सभी प्रकार को बताया गया है |
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