मौद्रिक और ऋण नीति क्या है? What is Monetary and Credit Policy in Hindi? यह सवाल बहुत से लोगों को सोचने पर मजबूर कर देती है और इसका कार्य क्या है? सबसे पहले आसान भाषा में आपको बता दें कि इसके द्वारा हमारे देश की अर्थव्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए इसके अंतर्गत बहुत सारी नीतियों का गठन किया जाता है । Banking क्षेत्र में इस शब्द का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान है । इसके कुछ महत्वपूर्ण Tools भी हैं जिसके बारे में हम नीचे विस्तार पूर्वक चर्चा करेंगे ।
मौद्रिक नीति क्या है?
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को नियमित रूप से चलाने के लिए जिन नियमों को बनाया जाता है उसे मौद्रिक नीति कहा जाता है या मुद्रा आपूर्ति की नीति मौद्रिक नीति से इसे संबोधित किया जाता है । मौद्रिक नीति Monetary Policy Committee द्वारा कैसे तैयार की जाती है । इसके माध्यम से देश की अर्थव्यवस्था में मुद्रा प्रवाह (Money Flow) को नियंत्रित किया जाता है । इसके माध्यम से अर्थव्यवस्था की संपूर्ण बैंकिंग प्रणाली को नियंत्रित किया जाता है
सरल भाषा में समझे तो मुद्रा और ऋण आपूर्ति लागत और उपयोग का नियंत्रण और इससे मुद्रास्फीति के साथ विकास को बढ़ावा देने के लिए मौद्रिक नीति को तैयार किया जाता है ।
मौद्रिक नीति को Control करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण Instrument के बारे में व्याख्या नीचे की गई है:-
Credit Control क्या है?
Reserve Bank Of India साख नियंत्रण का कार्य करता है, जो साधारणतया किसी भी Central Bank का प्रधान कार्य माना जाता है। वस्तुतः साख नियंत्रण के माध्यम से Reserve Bank Of India विनिमय मूल्यों तथा अन्य गतिविधियों में स्थिरता बनाए रखता है। इसके लिए Reserve Bank Of India सभी वैधानिक उपायों जैसे Bank Rate Policy, Open Market Operations, Commercial Banks के नकद कोषों के प्रतिशत में परिवर्तन, Direct Action, Rationing of Credit, Moral Encouragement आदि का सहारा लेता है। Reserve Bank Of India,1956 के बाद से चयनात्मक साख नियंत्रण के उपायों का अधिकाधिक प्रयोग करने लगा है। यह गुणात्मक तथा परिमाणात्मक नियंत्रण द्वारा भी बैंकों की साख क्रियाओं का नियंत्रण करता है।
Law of Credit Control
साख मुद्रा का नियन्त्रण Reserve Bank Of India का एक प्रमुख कार्य है। Reserve Bank Of India साख नियन्त्रण के लिए परिमाणात्मक (Quantitative Method) तथा गुणात्मक (Qualitative Method) का प्रयोग करता है। परिमाणात्मक विधि के अन्तर्गत बैंक दर, खुले बाजार की क्रियाएँ, परिवर्तनशील कोष अनुपात तथा तरलता कोष अनुपात तथा तरलता कोष अनुपात का प्रयोग किया जाता है जबकि गुणात्मक विधि के अन्तर्गत चयनित साख नियन्त्रण, साख समायोजन, नैतिक अनुनय प्रचार तथा प्रत्यक्ष कार्यवाही की जाती है। अतः Reserve Bank Of India द्वारा साख नियंत्रण के लिए अपनाई जाने वाली विधियों की संक्षिप्त विवेचना निम्नवत् है ।
> मुद्रास्फीति क्या है? इसके प्रकार, कारण और प्रभाव क्या है?
> मुद्रा क्या है? इसके कार्य,प्रकार और विशेषताएँ क्या है?
> मुद्रा बाजार (Money Market) क्या है और इसके क्या कार्य है?
Selective Credit Control
चयनात्मक साख नियंत्रण का प्रयोग कम आपूर्ति वाली वस्तुओं के विरुद्ध किया जाता है। ये वस्तुएँ हैं- खाद्यान्न, तिलहन, तेल, वनस्पति घी, कपास, खांडसारी, गुड़, चीनी, सूती कपड़ा एवं सूती धागा। भारत में इसके अन्तर्गत तीन उपाय किए जाते हैं ।
(1) कुछ विशिष्ट Securities या धरोहर के आधार पर ऋणों के लिए न्यूनतम मूल्यांतर (Margin) निर्धारित करना,
(II) कुछ विशेष उददेश्यों के लिए ली जाने वाली उधार की राशि की उच्चतम सीमा निर्धारित करना,
(III) कुछ विशेष प्रकार के अग्रिमों पर भेदमूलक व्याज की दरें वसूल करना।
9 अक्टूबर, 1991 से Reserve Bank Of India ने चयनात्मक साख नियंत्रण के लिए तीन नए कदम उठाए हैं। ये हैं-
(a) रूई और कपास को चयनात्मक साख नियंत्रण के अधीन लाया गया,
(b) दालों की धरोहर पर चयनात्मक साख नियंत्रणों को और मजबूत बनाया गया,
(c) गेहूँ पर अग्रिमों की साख सीमा किसी पार्टी द्वारा 1989-90 तक समाप्त तीन वर्षों में अधिकतम उपलब्ध साख की 85% निश्चित की गई।
Quantitative और Qualitative Credit क्या है ?
साख नियंत्रण से अभिप्राय देश में साख (Credit) की मात्रा एवं दशा पर नियंत्रण से है। केंद्रीय बैंक के कार्यों में एक महत्त्वपूर्ण कार्य साख पर नियंत्रण करना होता है। भारत में यह कार्य Reserve Bank Of India द्वारा सम्पन्न किया जाता है।
साख नियंत्रण के उपायों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-
(i) परिमाणात्मक उपाय तथा
(ii) गुणात्मक (चयनात्मक) उपाय।
परिमाणात्मक साख नियंत्रण का उद्देश्य देश में साख (उधारी) की कुल मात्रा पर नियंत्रण स्थापित करना होता है। यह सभी प्रकार के उद्योगों तथा व्यवसायों पर एकसमान लागू होता है। परिमाणात्मक साख नियंत्रण के लिए Central Banks द्वारा प्रायः Bank Rate, Open Market Operation, Statutory Liquidity Ratio तथा Variable Cash Reservation Ratio का सहारा लिया जाता है, जबकि प्रचार, साख की राशनिंग, उपभोक्ता साख का नियमन, नैतिक दबाव, मार्जिन आवश्यकताओं में परिवर्तन, प्रत्यक्ष कार्यवाही आदि गुणात्मक साख नियन्त्रण के उपाय हैं।
Main tools of Credit Control
साख नियन्त्रण के लिए भारती Reserve Bank Of India द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले प्रमुख उपकरण निम्नवत् है ।
(i) CFR – परिवर्तन कोष अनुपात
(A) CRR – नगद आरक्षी अनुपात
(B) SLR – वैधानिक तरलता अनुपात
(ii) Bank Rate – बैंक दर
(iii) Repo Rate – रेपो दर
(iv) Reverse Repo Rate – रिवर्स रेपो दर
(v) Open Market Operation – खुली बाजार की प्रक्रिया
(vi) MSF – सीमांत स्थाई सुविधा परिवर्तन कोष अनुपात (Change Fund Ratio)
Reserve Bank Of India तरल कोष अनुपात में परिवर्तन के द्वारा भी साख नियंत्रण करता है। यह अनुपात जितना ही अधिक होगा उतना ही कम साख सृजन होगा। परिवर्तनीय कोष अनुपात के दो घटक Cash Reserve Ratio तथा Statutory Liquidity Ratio (SLR) है।
Cash Reserve Ratio क्या है
प्रत्येक अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों को अपनी जमा का निश्चित अंश Reserve Bank Of India के पास नकद रूप में रखना अनिवार्य होता है। इस अंश का निर्धारण Reserve Bank Of India द्वारा किया जाता है। सामान्यतः यह 3% से 15% के मध्य होता है। नकद आरक्षित अनुपात जितना ही अधिक होगा, Commercial Banks की साख सृजन क्षमता उतना ही कम होगी। जब Reserve Bank Of India को मुद्रा प्रसार करना होता है तो नकद आरक्षित अनुपात में कमी कर देता है। इसके विपरीत नकद आरक्षित अनुपात में वृद्धि करता है।
Statutory Liquidity Ratio क्या है
सभी वाणिज्यिक बैंकों को अपनी संपत्ति का कम-से-कम 25% Reserve Bank Of India के पास CRR के अन्तर्गत रखे गए नगद के अतिरिक्त नकद, स्वर्ण, विदेशी मुद्रा की स्वीकृत Securities में रखना पड़ता है। यही वैधानिक तरलता अनुपात है। केंद्रीय बैंक द्वारा वैधानिक तरलता अनुपात में वृद्धि किए जाने पर वाणिज्यिक बैंकों द्वारा कम मात्रा में साख सृजन होता है। वैधानिक तरलता अनुपात में कमी होने पर साख सृजन अधिक होता है। C.R.R. पर Reserve Bank Of India, बैंक दर पर बैंकों को ब्याज देता है पर ऐसी कोई स्थिर या निश्चित दर नहीं है प्रतिशत की दर आधारित Securities की प्रतिशत की दर पर निर्भर करती है।
Bank Rate
बैंक दर वह दर है जिस पर Central Bank प्रथम श्रेणी तथा अनुमोदित हुंडियों का जमानत के आधार पर देश में वाणिज्यिक बैंकों को ऋण प्रदान करता है। अथवा प्रथम श्रेणी के बिलों की पुनर्कटौती या पुनर्बट्टा (Recount) करता है। बैंक दर की नीति इस बात पर निर्भर करती है कि देश में वाणिज्यिक बैंक किस सीमा तक ऋण प्राप्त करने के लिए Central Bank पर आधारित है। अन्य शब्दों में यदि Central Bank देश की वाणिज्यि बैंकिंग प्रणाली को प्रभावी वित्तीय सहायता प्रदान करती है तो बैंक दर की नीति अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में अधिक सफल होगी। यदि Central Bank देश में मुद्रा की पूर्ति बढ़ाना चाहता है तो बैंक दर को कम कर देता है। बैंक दर को कम करने पर वाणिज्यिक बैंकों को कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध होगा। इससे वाणिज्यिक बैंक औद्योगिक क्षेत्र या अन्य व्यापारिक गतिविधियों के लिए अधिक ऋण उपलब्ध करा सकेंगे फलतः आर्थिक विकास को प्रोत्साहन मिलेगा।
Repo Rate
Reserve Bank Of India द्वारा बैंकों को बेचे जाने वाले सरकारी बॉण्डों एवं Securities (पुनर्खरीद समझौतों के अन्तर्गत) पर दी जाने वाली ब्याज की दर रेपो दर (Repo Rate) कहलाती है।
Reverse Repo Rate
यह रेपो दर से उल्टी होती है। बैंकों के पास दिनभर के कामकाज के बाद बहुत बार एक बड़ी रकम शेष बच जाती है। बैंक वह रकम अपने पास रखने के बजाए Reserve Bank Of India में रख सकते हैं, जिस पर उन्हें Reserve Bank Of India से ब्याज भी मिलता है। जिस दर पर यह ब्याज मिलता है, उसे रिवर्स रेपो दर (Reverse Repo Rate) कहते हैं।
महत्वपूर्ण तथ्य (Important Facts) 3 मई, 2011 को 2011-12 की मौद्रिक एवं साख नीति की घोषणा के समय रिवर्स रेपो दर को रेपो दर के साथ संबंध करते हुए Reserve Bank Of India ने यह कहा था कि आगे से इनमें से केवल एक (रेपो दर) संदर्भ दर रहेगी तथा रिवर्स रेपो दर इससे एक प्रतिशत बिंदु नीचे बनी रहेगी। इसी के साथ यह घोषणा भी Reserve Bank Of India द्वारा की गई थी कि बैंकों के लिए नई शुरू की गई Marginal Standing Facility के लिए ब्याज की दर रेपो दर से एक प्रतिशत बिंदु अधिक रहेगी। |
Open Market Operations क्या है?
Reserve Bank Of India के द्वारा जब मुद्रा बाजार में सरकारी हुंडियों के क्रय विक्रय के द्वारा देश में मुद्रा बाजार तथा Commercial Banks पर नियंत्रण करती है/किया जाता है, तो इसे खुले बाजार की क्रियाएँ कहा जाता है। Reserve Bank Of India को जब बाजार में व्याप्त मुद्रा को निकालना या कम करना होता है तो वह Hundis एवं Securities का क्रय करने लगती है।
अन्य शब्दों में, जब Reserve Bank Of India द्वारा Securities का क्रय किया जाता है तब बाजार में तरलता की कमी हो जाती है। इसके विपरीत जब Reserve Bank Of India बाजार से Securities या हुंडियों का क्रय करती है तो बाजार में तरलता बढ़ जाती है अर्थात बाजार में मुद्रा की पूर्ति बढ़ जाती है।
अन्य शब्दों में, Reserve Bank Of India द्वारा Securities के विक्रय करने पर साख सृजन कम होता है तथा Securities के क्रय करने पर साख सृजन अधिक होता है। खुले बाजार की क्रिया का प्रयोग केवल साख नियंत्रण या मौद्रिक नीति अस्त्र के रूप में ही नहीं किया जाता है, बल्कि इसे सरकारी Securities के क्रय-विक्रय के माध्यम या राजकोषीय यंत्र के रूप में भी किया जाता है। Reserve Bank Of India द्वारा Securities का क्रय करना (सामान्यतया अल्पावधि की) तथा दूसरी Securities का उसके स्थान पर विक्रय करने की (लम्बी अवधि की Securities का) क्रिया जिससे Securities की परिपक्वता अवधि लम्बी हो सके, को स्विच ऑपरेशन की संज्ञा दी जाती है।
Marginal Standing Facility (MSF) क्या है
इस उपकरण को भारत में 9 मई 2011 को लागू किया गया था। यह सुविधा मात्र वाणिज्यिक बैंकों को ही प्राप्त है। इसका लाभ क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक एवं सहकारी बैंक नहीं उठा सकते इसके अंतर्गत यदि किसी बैंक को मात्र घंटों के लिए ऋण की आवश्यकता हो तो वह RBI से प्राप्त कर सकती है। परन्तु इस प्रक्रिया में वार्षिक ब्याज दर हमेशा रेपो दर से 1% ज्यादा होगी। अतः वर्तमान में MSF की दर 7% है। इस सुविधा के अंतर्गत कोई भी बैंक अपने कुल जमा राशि के 2% से ज्यादा की राशि ऋण के रूप में प्राप्त नहीं कर सकती। MSF के माध्यम से ऋण प्राप्त करने के लिए बैंकों को उतने ही मूल्य के बराबर या उसे ज्यादा की Securities गिरवी रखनी होती है। परन्तु यहाँ बैंक उन Securities को भी गिरवी रख सकती है जो उसने SLR के रूप में खरीदा है।
जब मौद्रिक नीतियों के माध्यम से RBI लगातार दरों में कटौती करती है तो इन नीतियों को सस्ती ऋण नीति कहते हैं। क्योंकि इन नीतियों का मुख्य उद्देश्य उपभोक्ता को सस्ते दर पर ऋण प्राप्त कराने का होता है जिससे उपभोग बढ़ता है एवं आर्थिक संवृद्धि को बढ़ावा मिलता है। इसके विपरीत यदि मौद्रिक नीतियों के माध्यम से RBI लगातार दरों में बढ़ोत्तरी करे, तो इन नीतियों को मंहगी ऋण नीति कहते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य ऋण को महंगा कर मुद्रास्फीति के निवारण के उद्देश्य से मांग को नीचे लाने का होता है।
जब RBI मौद्रिक एवं साख नीतियों में परिवर्तन करती है, तो दरों में किये गये परिवर्तन के अनुसार बैंकों को अपनी आधार दर परिवर्तित करनी होती है। (आधार दर वह न्यूनतम, ब्याज दर है जिसके नीचे बैंक किसी भी ग्राहक को ऋण प्रदान नहीं कर सकती) यदि मौद्रिक नीतियों के माध्यम से RBI दरों को परिवर्तित करे बैंक अपना आधार पर परिवर्तित न करे, तो ऐसे में मौद्रिक नीतियों विफल हो जाती है। ऐसी स्थिति में RBI गुणात्मक उपकरणों का प्रयोग करती हैं, जिसके अंतर्गत वह बैंकों को उनकी नैतिक जिम्मेदारियों का बोध कराती है। अन्यथा चेतावनी देती है या उन पर हरजाना लागू करती है।
भारत में हाल में RBI ने लगातार दो बार परिवर्तन किया, परन्तु बैंक इसका लाभ उपभोक्ता तक पहुंचाने में विफल रहे। बैंकों की मुख्य समस्या यह रही है कि महंगी ऋण नीति के दौर में जमाकर्ता को आकर्षित करने के उद्देश्य से बैंकों ने सावधि जमा राशियों पर लगातार ब्याज दर बढ़ाया था। जिसके कारण उनका व्यय प्राप्त जमा राशियों पर ब्याज भी जाता है ऐसे में यदि बैंक मौजूदा ग्राहकों के लिए ब्याज दर में कटौती करते हैं, तो उनका घाटा होना स्वाभाविक हो जाता है। दूसरी ओर RBI का कहना है कि यदि दरों में की गई कटौती का लाभ बैंक ग्राहकों तक नहीं पहुंचती है, तो भविष्य में दरों को कम करना संभव नहीं होगा।
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Referenced Rate
संदर्भित दर मुद्रा उधारी बाजारों में मुद्रा के मूल्य के सम्बन्ध में एक सीमा चिन्ह (Benchmark) का काम करती है। यह दर सभी प्रकार की उधारी के सम्बन्ध में दिशा निर्देशक का कार्य करती है। यह दर न्यूनतम दर होती है जिस पर पूंजी बाजार में कोई उधार लिया तथा दिया जाता है। बाजार में प्रचलित ब्याज दर जिस पर सामान्यतया समझौता होता है वह संदर्भित दर से ऊँची होती है। इसके द्वारा ब्याज दर में होने वाले परिवर्तन निर्देशित होते हैं। अधिकांश देशों ने अपनी संदर्भित दरें निश्चित की हैं।
U.S.A के लिए संदर्भित दर Feds Funds Rate, जर्मनी के लिए Frankfurt Interbank offered Rate-FIBOR, जापान के लिए Tokyo Interbank offered Rate-TIBOR, तथा U.K के लिए संदर्भित या निर्देशक दर London Interbank offered Rate-LIBOR है। 15 अप्रैल, 1997 में घोषित साख नीति के अनुसार Reserve Bank Of India द्वारा घोषित बैंक दर Reserve Bank Of India द्वारा दिए जाने वाले सामान्य Refinance and foreign exchange जमाओं के सम्बन्ध में संदर्भित दर का काम करेगी। इस प्रकार LIBOR की तरह, Reserve Bank Of India भी बैंक दर को संदर्भित दर के रूप में विकसित करने का प्रयास कर रहा है।
प्राइम लैडिंग रेट के स्थान पर नई ‘Base Rate’ व्यवस्था (New Base Rate System Instead Of Prime Landing Rate) |
बैंकों द्वारा दी जाने वाली उधारियों पर ब्याज दरों के मामले में अधिक पारदर्शिता लाने के लिए प्राइम लैंडिंग रेट (PLR) के स्थान पर नई Base Rate व्यवस्था अपनाई जा रही है। पूर्व प्रचलित ‘प्राइम लैंडिंग रेट’ बैंक की मुख्य ब्याज दर होती थी तथा विभिन्न श्रेणियों के ऋणों पर ली जाने वाली ब्याज की वास्तविक दर पीएलआर से कुछ कम या अधिक हो सकती थी। नई लागू की जा रही ‘Base Rate’ बैंक द्वारा घोषित वह दर होगी जिससे कम दर पर कोई भी ऋण बैंक द्वारा नहीं दिया जाएगा। |
Prime Lending Rate
किसी बैंक की प्रधान उधारी दर वह ब्याज दर है जिस पर बैंक अपने सबसे विश्वसनीय ग्राहक को जिसके सम्बन्ध में जोखिम शून्य हो, उधार देने के लिए तैयार है। यह वह दर होती है जिस पर बैंक यह उम्मीद करता है उसकी सभी लागते तथा व्यय पूरा करने के बाद पूंजी पर पर्याप्त प्रतिफल मिल जाएगा। यह दर एक तरह से आधार दर के रूप में कार्य करती है जिसको ध्यान में रखकर अन्य उद्यमियों के सम्बन्ध में बैंक अपनी ब्याज दर निर्धारित करता है।
Monetary Policy committee
2011 में गठित Financial Sector Legislative Reform Committee (FSLRC) ने यह सुझाव दिया था कि मौद्रिक एवं साख नीतियों के निर्धारण में सरकार की भूमिका हो एवं इस उद्देश्य से मौद्रिक नीति समिति का गठन किया जाये उर्जित पटेल समिति ने इसी सुझाव को दोहराया एवं इस समिति के गठन का प्रस्ताव रखा। हाल ही में भारत सरकार द्वारा जारी नयी Indian Financial Code के अंतर्गत सरकार ने सात सदस्य मौद्रिक नीति समिति के गठन का प्रस्ताव रखा जिसमें RBI के गवर्नर भी एक सदस्य होंगे एवं समिति का नेतृत्व भी वही करेंगे। इन सात सदस्यों में से चार का चयन सरकार करेगी एवं कोई भी निर्णय बहुमत के आधार पर होगा, साथ ही इस पूरी प्रक्रिया में RBI के गवर्नर के वीटो का अधिकार खत्म कर जायेगा।
वर्तमान में मौद्रिक नीतियाँ RBI अपने Technical Advisory Committee (TAC) के सुझाव के आधार पर करती हैं परन्तु अंतिम निर्णय RBI के गवर्नर का होता है। अतः प्रस्तावित समिति के गठन के बाद इस पूरी प्रक्रिया में के गवर्नर की भूमिका कम हो जायेगी। साथ ही चूंकि चार सदस्य सरकार द्वारा चयनित होंगे इस समिति के निर्णय पर सरकार का प्रभाव ज्यादा होगा। अतः RBI इस समिति का विरोध कर रही है। सूत्रों के अनुसार, इस को खत्म करने के उद्देश्य से इस समिति को संरचना में परिवर्तन का प्रस्ताव रखा गया है। अब यह समिति 6 सदस्यों की होगी एवं इसका नेतृत्व के RBI गवर्नर करेंगे जोकि सातवें सदस्य होंगे। मतदान का अधिकार केवल उन 6 सदस्यों का होगा एवं बहुमत के आधार पर कोई भी निर्णय लिया जायेगा। यदि मतदान में बराबरी की स्थिति उत्पन्न हो जाये तभी RBI के गवर्नर मतदान करेंगे।
चूंकि मुद्रास्फीति का नियंत्रण एवं आर्थिक संवृद्धि RBI तथा भारत सरकार दोनों के सम्मिलित प्रयासों से ही सुनिश्चित की जा सकती है। मौद्रिक नीतियों के में सरकार की भूमिका जायज है। साथ ही चूंकि सरकार जनता के प्रति जवाबदेह होती है। इस पूरी प्रक्रिया में उसकी भी भूमिका होनी चाहिए। परन्तु दूसरी ओर यह कहा जा रहा है कि विगत कई वर्षों तक RBI अपनी जिम्मेदारियों को कुशलता से निभाते आयी है। ऐसे में इस समिति में सरकार की भूमिका एक हस्तक्षेप की तरह है एवं इससे इस प्रक्रिया का राजनीतिकरण की संभावना बढ़ जाती है।
RBI का राष्ट्रीयकरण | 1 जनवरी 1949 |
प्रथम गवर्नर | Sir Osborne Smith |
प्रथम भारतीय गवर्नर | C.D. Deshmukh |
भारत में बैंकिंग प्रणाली में RBI का स्थान सर्वोच्च है। RBI की निम्नलिखित भूमिकाएँ हैं :-
(i) यह भारत सरकार एवं अन्य राज्य सरकारों के लिए बैंक का कार्य करती है। अतः भारत सरकार के लिए ऋण उठाने की प्रक्रिया भी RBI की ही जिम्मेदारी है। |
(ii) यह भारत में बैंकों के लिए बैंक का कार्य करती है। अति बैंक अपनी अतिरिक्त राशि RBI के पास जमा कर सकते हैं एवं साथ ही आवश्यकता पड़ने पर RBI से ऋण प्राप्त कर सकते हैं।
(iii) RBI भारत में बैंकिंग प्रणाली को नियंत्रित करती है एवं उसकी अनुमति के बिना अनुसूचित बैंकों की स्थापना नहीं हो सकती।
(iv) RBI भारत में मौद्रिक एवं साख नीतियों के माध्यम से मुद्रा के प्रवाह को नियंत्रित करती है एवं यह मुद्रास्फीति आर्थिक संवृद्धि तथा मुद्रा के विनिमय दर का प्रबंधन करती है।
(v) RBI भारत में विदेशी मुद्रा कोष का भण्डारण/सर्वेक्षण करती है।
(vi) यह देश में Rs 1 के ऊपर के नोट जारी करती है।
Conclusion
दोस्तों मुझे आशा है कि आपको हमारा आर्टिकल मौद्रिक और ऋण नीति क्या है? के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी ।
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