Negotiable Instruments Act क्या है?

आज हम लोग परकाम्य लिखत अधिनियम 1881 (Negotiable Instruments Act 1881) के बारे में बात करेंगे जिसमें हम लोग जानेगे की Negotiable Instruments Act क्या है या परकाम्य लिखत अधिनियम 1881 क्या है? यह एक ऐसा topic है जो की Banking में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है | 

Negotiable Instruments Act (परकाम्य लिखत अधिनियम) 1881 क्या है?

व्यापार एवं व्यवसाय की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु, परकाम्य विलेख का उद्गम हुआ था। इंग्लैंड में 12वीं सदी में पहला विनिमय लिखत प्रयोग किया गया और तदुपरांत प्रतिज्ञा पत्र चलन में आए। वर्ष 1704 में ब्रिटिश सरकार ने प्रतिज्ञा पत्र के चलन को वैधानिकता प्रदान की। 18वीं सदी में विनिमय विपत्र एवं प्रतिज्ञा पत्र ने Commercial दस्तावेजों की श्रेणी प्राप्त की। विनिमय विपत्र एवं प्रतिज्ञा पत्र की परकाम्यता को 18वीं सदी में मान्यता प्राप्त हुई। वर्ष 1860 में ब्रिटिश न्यायालय ने चेक को परक्राम्य विलेख के रूप में स्वीकार किया। वर्ष 1881 में भारत में परकाम्य लिखत अधिनियम (Negotiable Instruments) पारित किया गया, तदुपरांत वर्ष 1957 में एक चेक अधिनियम पारित किया गया। वर्ष 1988 और 2002 में कुछ और धाराएं जोड़ कर, अब इस अधिनियम की, 142 से बढाकर 147 धाराएं कर दी गईं। 

परक्राम्य लिखत अधिनियम (Negotiable Instruments Act) सारे भारत में लागू होता है। इस अधिनियम के अनुसार परक्राम्य लिखत (Negotiable Instruments) अलग-अलग तरह के होते हैं। जैसे (अ) प्रतिज्ञा पत्र, (ब) विनिमय विपत्र, (स) चेक। 

धारा-13 के अनुसार परकाम्य लिखत का अर्थ है प्रतिज्ञा पत्र (Promissory Note), विनिमय विपत्र (Bill of Exchange) या चेक (Cheque), जो धारक या उसके आदेश (order) पर देय होता है। अगर कोई अन्य लिखत (instrument) हस्तांतरण और पृष्ठांकन (endorsement) की शर्त को पूरा करे तो उसे भी परकाम्य लिखत (Negotiable Instruments) माना जा सकता है। यह याद रहे कि अधिनियम (Act) में परकाम्य लिखत की परिभाषा (definition) प्रत्यक्ष तौर पर नहीं दी गई है। यह केवल परक्राम्य लिखत के बारे में बताती है। 

परकाम्य लिखतों का वर्गीकण- बैंकिंग व्यवहार और न्यायालयों के निर्णय के आधार पर, अलग-अलग तरह के लिखत, निम्नलिखित हैं, जिन्हें परकाम्य लिखत मान लिया जाता है। 

परकाम्य लिखत अधिनियम के अनुसार क्या-क्या Negotiable Instruments है?

  1. प्रतिज्ञा पत्र (Promissory note) 
  2. विनिमय विपत्र (Bill of Exchange) 
  3. चेक (Cheque) 
  4. बैंक डराफ्ट (Bank Draft)

धारा 137 Transfer of Property Act 1882 

  1. लदान पत्र (Bill of lading)
  2. डॉक वारंट (Dock warrant)
  3. रेल्वे रसीद (Railway Receipt) 
  4. वेयर हाउस कीपर का प्रमाण पत्र (Wharfinger’s certificate)
  5. Delivery order
  6. IBA approved GRs 

अन्य व्यवहार के आधार पर (Customs/practice)

  1. सरकारी प्रतिज्ञा पत्र (Govt. promissory note) 
  2. राजकोषीय विपत्र (Treasury Bill)
  3. हुंडी  (Hundi)
  4. वाणिज्यिक प्रपत्र (Commercial paper)
  5. जमा प्रमाण पत्र (Certificate of Deposit)

परकाम्य लिखत के बारे में उपधारणाएं: (Presumptions about Negotiable Instruments) 

धारा-118 में निम्नलिखित उप-धारणाएं हैं:-

  1. हर एक परक्राम्य लिखत, प्रतिफल (consideration) के लिए बना, स्वीकृत किया गया या पृष्ठांकन (endorse) किया गया।
  2. हर परकाम्य लिखत के ऊपर लिखी हुई तिथि ही, वह तिथि मानी जाएगी, जब परकाम्य लिखत बनाई गई हो।
  3. यह मान लिया जाएगा कि परकाम्य लिखत को उसकी अपनी तिथि के उचित समय (reasonable period) के अंदर और परिपक्व (mature) होने से पहले स्वीकार किया गया।
  4. हर एक परकाम्य लिखत का हस्तांतरण, परिपक्व तिथि (maturity date) से पहले हुआ।
  5. परकाम्य लिखत के ऊपर किये गये पृष्ठांकन, उसी क्रम में माने जाएंगे जैसे वो नजर आ रहे हैं।
  6. गुम हो चुकी लिखत के संबंध में यह मान लिया जाएगा कि बनाते समय, परकाम्य लिखत के ऊपर सही स्टाम्प शुल्क (stamp duty) दिया गया है ।
  7. हरेक धारक (holder) को यथाविधि धारक (holder in due course) माना जाएगा। 

अगर कोई व्यक्ति इन उप-धारणाओं को नहीं मानता तो उसे, इनके विरूद्ध अपना पक्ष साबित करना पड़ेगा।

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परकाम्यता का अर्थ क्या है? What is Meaning of Negotiability in Hindi?

प्रत्येक परकाम्य लिखत (Negotiable Instruments) का एक विशेष लक्षण होता है जिसे परकाम्यता कहा जाता है, जिसका अर्थ है कि : 

  1. यह लिखत बिना किसी रोक-टोक के हस्तांतरित किया जा सकता है । हस्तांतरण, वाहक लिखत (bearer) की स्थिति में सुपुर्दगी (delivery) द्वारा अथवा आदेशक लिखत (order) की स्थिति में सुपुर्दगी (delivery) के साथ साथ पृष्ठांकन (endorsement) द्वारा पूरा हो जाएगा।
  2. हस्तांतरकर्ता (transferor) के दोषपूर्ण स्वामित्व (defective title) के कारण, यथाविधि धारक (holder in due course) के स्वामित्व (title) पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। 
  3. धारक, न्यायालय में वाद (filing of suit) स्वयं के नाम से प्रस्तुत कर सकता है एवं उसके नाम पर भी वाद प्रस्तुत किया जा सकता है।

आज आपने क्या सीखा

दोस्तों मुझे आशा है कि आपको हमारा आर्टिकल Negotiable Instruments Act क्या है या परकाम्य लिखत अधिनियम 1881 क्या है? के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी इसके लिए आपको और कहीं जाने की जरूरत नहीं है|

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