टेलीविज़न पर निबंध | Essay on Television in Hindi

हेलो दोस्तों, आज हमलोग इस लेख में टेलीविज़न पर निबंध हिंदी में (Television essay in Hindi) पड़ेंगे जो कि आपको Class 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 व अन्य competitive examination जैसे कि SSC, UPSC, BPSC जैसे एग्जाम में अत्यंत लाभकारी साबित होंगे। टेलीविज़न पर निबंध के अंतर्गत हम टेलीविज़न से संबंधित पूरी जानकारी को विस्तार से जानेंगे इसलिए इसे अंत तक अवश्य पढ़ें।

टेलीविजन के आविष्कारकजेo एलo बेयर्ड
टेलीविजन की खोज 1927 में
पहला टीवी शो द क्वीन मैसेंजर (The Queen’s Messenger)
पहला टेलीविजन फिल्म द किलर, 1964 में

[Essay 1] टेलीविज़न पर लेख (Short Essay on Television in Hindi)

टेलीविजन को विज्ञान का अद्भुत आविष्कार कहा जाता है। इसे हिंदी में दूरदर्शन और अंग्रेजी में इसे टेलीविजन कहते हैं। इसे संक्षिप्त में टीवी (TV) कहते हैं। TV full form – Television होता है। इसके द्वारा हम दूर की वस्तुओं का दर्शन घर बैठे कर सकते हैं इसलिए इसे दूरदर्शन नाम दिया गया है। दूरदर्शन पर दृश्यों को देखकर ऐसा लगता है मानो यह घटनाएं कहीं दूर नहीं बल्कि आंखों के सामने घट रही हो। मनोरंजन करने तथा देश दुनिया की खबरें से अवगत कराने वाला यह आविष्कार आज पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो चुका है।

प्रारंभ में टेलीविजन पर सिर्फ श्वेत-श्याम चित्र देखे जा सकते थे परंतु वर्तमान समय में इस पर रंग-बिरंगे चित्र देखी जा सकती है। आजकल प्रसारण डिजिटल हो गया है। जिस वजह से दर्शकों को सभी चलचित्र साफ-सुथरे मिलते हैं। टेलीविजन पर कार्यक्रमों का प्रसारण इसके केंद्र से किया जाता है। जिसके लिए भिन्न-भिन्न स्थानों पर प्रसारण केंद्र बनाया गया है। जहां से प्रसारण कर्ताओं द्वारा प्रसारण चालू किया जाता है। इन केंद्रों को स्टूडियो (Studio) कहा जाता है। टेलीविजन पर कार्यक्रमों का प्रसारण संचार उपग्रह (Communication Satellite) की मदद से किया जाता है।

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टेलीविज़न को विज्ञान की अद्भुत उपलब्धियों में से एक माना जाता है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, टेलीविज़न दूर के दर्शन कराने में सहायक है। रेडियो से हम केवल सुनकर ही अपनी ज्ञानवृद्धि अथवा मनोरंजन करते हैं जबकि टेलीविज़न द्वारा हम कार्यक्रमों तथा घटनाओं को देखते भी हैं।

जन-जन में है महान

टेलीविज़न एक सामाजिक वरदान, 

खेल-कूद हो या असीम ज्ञान,

गीत-संगीत, राजनीति या हो विज्ञान,

मन-मन में बहा मनोरंजन का तूफ़ान।।

यदि यह कहा जाए कि आधुनिक युग में टेलीविज़न लोगों के मनोरंजन का सर्वाधिक लोकप्रिय साधन है तो ग़लत न होगा। टेलीविज़न के द्वारा प्रत्येक वर्ग तथा क्षेत्र के लोगों के लिए अनेक प्रकार के मनोरंजक व शिक्षाप्रद कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं जिनके द्वारा मनोरंजन के अतिरिक्त हमें देश की सामाजिक, राजनीतिक व अन्य समस्याओं का पता चलता है। 

ऐतिहासिक कार्यक्रमों में हमें अपने देश के इतिहास की झाँकी मिलती है। धार्मिक कार्यक्रमों द्वारा हमें यह ज्ञात होता है कि मूल रूप से सभी धर्म अहिंसा, करुणा, मैत्री और परोपकार आदि गुणों पर ही बल देते हैं। अतः धर्म के आधार पर एक दूसरे के प्रति वैरभाव रखना मूर्खता है।

भारतीय संस्कृति एवं नृत्य व संगीत के कार्यक्रमों में शास्त्रीय संगीत, गज़लें, मुशायरा, पाश्चात्य संगीत और प्रत्येक कक्षा के बच्चों के लिए कार्यक्रम प्रसारित होते हैं। किसानों से सम्बन्धित “कृषि दर्शन” में बच्चों, युवा वर्ग और बड़े-बूढ़े लोगों के लिए विभिन्न कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं। बहुत से कार्यक्रमों में महत्त्वपूर्ण पदों पर आसीन व्यक्तियों के विचार जनता के समक्ष रखे जाते हैं तथा जनता के विचार उनके समक्ष रखे जाते हैं। इस प्रकार एक दूसरे के विचारों का आदान-प्रदान होता है। 

लगभग सभी समाचार चैनलों में दर्शकों की समस्याओं के समाधान प्रस्तुत किए जाते हैं तथा देश में समाज सेवकों द्वारा की जा रही सेवाओं से जनता को अवगत कराया जाता है। हिन्दी तथा अंग्रेज़ी के अतिरिक्त देश की अन्य भाषाओं में भी कार्यक्रम दिखाए जाते हैं। खेलों से सम्बन्धित कार्यक्रम तथा स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस के कार्यक्रमों का सीधा प्रसारण दूरदर्शन पर किया जाता है।

समाचारों के प्रसारण के समय टेलीविज़न पर सम्बन्धित समाचारों के दृश्य भी दिखाए जाते हैं। सामयिक विषयों से सम्बन्धित चर्चाएँ, जिनमें देश-विदेश की सामाजिक तथा आर्थिक स्थितियों का विश्लेषण किया जाता है, सुनने से ज्ञान में वृद्धि होती है। व्यापारियों के लिए यह वरदान है। वे अपने-अपने उत्पादित माल का लुभावना प्रदर्शन कर माल की शीघ्र बिक्री के लिए द्वार खोल लेते हैं तथा उधर दर्शकों को भी अच्छी-अच्छी तथा नई-नई वस्तुओं की जानकारी मिल जाती है।

Discovery Channel में बर्फ से ढके पर्वत शिखर, भोजपत्रों के वन, झरने का निर्मल जल, खुला नीला वातावरण, खुली प्रकृति और पशु-पक्षी देखकर हमारा ज्ञान बढ़ता ही है। “आस्था” आदि धार्मिक चैनलों पर प्रसारित कार्यक्रमों द्वारा वेदों और उपनिषदों आदि के विषय में जानकारी मिलती है।

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सर्वविदित है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के टेलीविज़न के कार्यक्रमों में विज्ञान, अंग्रेजी, गणित आदि विषयों का शिक्षण बहुत ही रुचिकर एवं स्पष्ट ढंग से किया जा रहा है जिससे विद्यार्थियों में इन विषयों को सीखने की उत्कट भावना जागृत हो रही है।

टेलीविज़न द्वारा सामान्य ज्ञान से सम्बन्धित कार्यक्रमों का भी प्रसारण किया जाता है जिससे दर्शकों के सामान्य-ज्ञान में वृद्धि होती है।फ़िल्में, नाटक व धारावाहिक टेलीविज़न के अत्यन्त लोकप्रिय कार्यक्रम हैं। आज के व्यस्त जीवन में हम घर बैठे फ़िल्म या नाटक देख सकते हैं जिससे समय तथा धन की बचत होती है, कहीं जाने का झंझट भी नहीं रहता। धारावाहिकों में संसार की श्रेष्ठ साहित्यिक रचनाओं को भी दिखाया जाता है। संगीत व नृत्य के कार्यक्रम हमारे मन को आह्लादित करते हैं। अन्त्याक्षरी के आयोजनों को भी लोग बहुत चाव से देखते हैं। 

अनेक कार्यक्रम हास्य-व्यंग्य से भरपूर होते हैं। टेलीविज़न पर महिलाओं एवं बच्चों के लिए विशेष कार्यक्रम दिखाए जाते हैं। इनमें मनोरंजन के साथ-साथ अन्य चैनलों के समान सामयिक समस्याओं पर भी चर्चा होती है। इसी प्रकार विभिन्न उद्योगों के सम्बन्ध में भी कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं। आजकल केवल नगरों में ही नहीं अपितु कस्बों तथा गाँवों में भी टेलीविज़न के कार्यक्रम देखे जाते हैं। इसके लिए सरकार ने सारे भारत में प्रसारण सेवाएँ उपलब्ध करायी हैं।

टेलीविजन के अनेक लाभ हैं। परंतु उनके साथ कुछ हानिया भी यह लोगों को मनोरंजन करने की सुविधा तो देता है परंतु अधिक टेलीविजन देखने से आंख और दिमाग से संबंधित अनेक प्रकार की बीमारियां उत्पन्न होने की समस्या होती है। यहां तक कि घंटों टेलीविजन देखने से शारीरिक थकान और सुस्ती आ जाती है। लोगों का जो समय पहले सामाजिक कार्यों में व्यतीत होता था अब वह समय टेलीविजन देखने में जाने लगा है। बच्चे खेलने के बजाय टेलीविजन में चिपक कर कार्टून देखना पसंद करते हैं इसलिए एक निर्धारित समय तक ही लोगों को टेलीविजन देखना चाहिए।

युवाओं में अत्यधिक टीवी देखने की आदत ने उन्हें गलत दिशा में ले गई है। कई वैज्ञानिकों एवं शोधकर्ताओं का मानना है कि अपराध के उपायों को उन्होंने टीवी के माध्यम से सीखा है। यह एक सरासर बुरा परवाह है। अच्छे बुरे में फर्क करने की ताकत टेलीविजन कभी-कभी खत्म कर देता है। आप उतना ही सोच सकते हैं जितना आपको व टेलीविजन दिखाता है। अत्यधिक टेलीविजन देखने से सिर्फ गलत काम ही नहीं बल्कि आपके समय की बर्बादी भी है। अंत में, निम्न पंक्तियों के साथ मैं अपने विचारों की इतिश्री करना चाहता हूँ।

“पूर्व युग सा आज का जीवन नहीं लाचार,

आ चुका है दूर द्वापर से बहुत संसार।”

अर्थात् आज का जीवन प्राचीन समय के पिछड़ेपन से बहुत आगे निकल गया है तथा द्वापर युग को बहुत पीछे छोड़ चुका है।

[ Essay 2] दूरदर्शन पर निबंध (Essay Writing on Television)

परिचय (Television Introduction)

दूरदर्शन अंग्रेजी शब्द टेलीविजन का हिन्दी पर्याय है। टेलीविजन’ (Television) अंग्रेजी के दो शब्दों ‘Tele’ और ‘vision’ से मिलकर बना है। Tele का अर्थ है ‘दूर’ और vision का अर्थ है ‘देखना’ अर्थात् ‘दूरदर्शन’। विज्ञान के जिन चमत्कारों ने मनुष्य को आश्चर्यचकित कर दिया है, उनमें टेलीविजन भी मुख्य है। इस यन्त्र के द्वारा दूर से प्रसारित ध्वनि चित्र सहित दर्शक के पास पहुंच जाती है।

भारत में दूरदर्शन का आगमन 15 सितम्बर, 1959 से ही समझना चाहिए, जब कि तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्रप्रसाद ने आकाशवाणी के टेलीविजन विभाग का उद्घाटन किया था। 500 वाट शक्ति वाला ट्रांसमीटर दिल्ली से 25 कि.मी. की दूरी तक कार्यक्रम प्रसारित कर सकता था। 1965 से एक News Bulletin के साथ नियमित रूप से प्रतिदिन एक घंटे का प्रसारण शुरू हुआ। टेलीविजन सेवा का बम्बई में विस्तार 1972 में ही हो पाया। 1975 तक कलकत्ता, चेन्नई, श्रीनगर, अमृतसर और लखनऊ में भी टेलीविजन केन्द्र स्थापित किए जा चुके थे।

प्रगति का एक पग और बढ़ा। 1 अगस्त, 1975 से अमेरिकी उपग्रह द्वारा 6 राज्यों के 2400 गाँवों की 25 लाख जनता दूरदर्शन से लाभान्वित हुई।

15 अगस्त, 1982 को भारतीय उपग्रह “INSAT-1 A” के माध्यम से विभिन्न दूरदर्शन केन्द्रों से एक ही कार्यक्रम दिखाना सम्भव हुआ। दूसरी ओर इन्सेट-1बी’ उपग्रह के सफल स्थापन के बाद सितम्बर, 1983 से न केवल भारत के विभिन्न दूरदर्शन-केन्द्रों में सामंजस्य स्थापित हो सका, अपितु देश के कोने-कोने में बसे हुए गाँव भी दूरदर्शन कार्यक्रम से लाभान्वित होने लगे। यही कार्य अब ‘इन्सेट-डी’ कर रहा है।

1981-1990 के दशक में ट्रांसमीटरों की संख्या 19 से बढ़कर 519 हो गई। अनेक शहरों में स्टूडियो भी खोले गए। दूरदर्शन ने 1993 में चार नए चैनल शुरू किए थे, किन्तु 1994 में परिवर्तन करके भाषानुसार कर दिए। 1995 इन्सेट 2-सी के प्रक्षेपण के बाद दूरदर्शन की नीति हर प्रांत के क्षेत्रीय चैनल बढ़ाने की रही।

15 अगस्त 1984 को सारे देश में एक साथ प्रसारित किए जाने वाले दैनिक राष्ट्रीय कार्यक्रमों का शुभारम्भ हुआ। 1987 में दैनिक प्रात:कालीन समाचार बुलेटिन का प्रसारण आरम्भ हुआ। 20 जनवरी 1989 को दोपहर का प्रसारण आरम्भ हुआ। जनवरी 1986 से दूरदर्शन की विज्ञापन-सेवा आरम्भ हुई। परिणामतः उसके राजस्व में बहुत अधिक वृद्धि हुई।

डी-डी 2 मैट्रो चैनल 1984 में शुरू हुआ। यह सेवा 46 शहरों में उपलब्ध है, किन्तु डिश एंटीना के जरिए देश के अन्य भागों में भी इसके कार्यक्रम देखे जा सकते हैं।

1995 से दूरदर्शन का अन्तरराष्ट्रीय चैनल शुरू हुआ। पी.ए.एस.-4 के द्वारा इसके प्रसारण एशिया, अफ्रीका तथा यूरोप के पचास देशों में पहुँच चुके हैं। अमरीका और कनाडा के लिए इसके प्रसारण पी.ए.एस.-1 मे किए जा रहे हैं।

नए चेनलों में खेल चेनल’ तथा अगस्त 2000 से पंजाबी चैनल शुरू हुआ जो 24 घंटे कार्यक्रम प्रसारित करेगा। दूरदर्शन पर सरकारी नियंत्रण था। उसके विकास का दायित्व सरकार पर होता था। 23 नवम्बर 1997 से इसका कार्यभार प्रसार-भारती (स्वायत्त प्रसारण परिपद्) ने संभाल लिया है।

दूरदर्शन मन को स्थिर करने का साधन है, एकाग्रचित्तता का अभ्यास है। इसके कार्यक्रम देखते हुए हृदय, नेत्र और कानों की एकता दर्शनीय है। जरा-सा भी व्यवधान साधक को बुरा लगता है । दूरदर्शन के कार्यक्रम के मध्य अन्य कोई व्यवधान दर्शक को बेचैन कर देता है, क्रोधित कर देता है।

दूरदर्शन मनोरंजन, ज्ञानवर्धन, शिक्षा तथा विज्ञापन का सुलभ और सशक्त माध्यम है। फीचर फिल्म, टेलीफिल्म, चित्रहार, चित्रमाला, रंगोली, नाटक-एकांकी-प्रहसन, लोकनृत्य-संगीत, शास्त्रीय-नृत्य-संगीत, मैजिक-शा, अंग्रेजी धारावाहिक, हास्य फिल्में, ये सभी दूरदर्शन के मनोरंजक कार्यक्रम ही तो हैं। ये दिनभर के थके-हारे मानव के मन को गुद्गुदा कर स्वस्थ और प्रसन्न करते हैं, स्फूर्ति और शक्ति प्रदान करते हैं।

टेलीविजन का उपयोग (use of television) जीवन और जगत् के विविध पहलुओं के कार्यक्रम दर्शक का निःसन्देह ज्ञानवर्धन करते हैं। बातें फिल्मों की’ जैसे कार्यक्रम जहाँ फिल्म-जगत् की पूरी जानकारी देते हैं, वहाँ यू.जी.सी. के कार्यक्रम वैज्ञानिक प्रगति का सूक्ष्म-परिचय भी देते हैं। टेलीविजन द्वारा शरीर के कष्टों से मुक्ति दिलाने के लिए डॉक्टरी सलाह दी जाती है, तो कानून की पेचीदगियों को समझाने के लिए चर्चा की जाती है। प्रकृति के रहस्य, समुद्र की अतल गहराई नभ की अनन्तता, विभिन्न देशों का सर्वांगीण परिचय, भारत तथा विश्व की कला एवं संस्कृति की विविधता की जानकारी, सभी ज्ञानवर्धन के कार्यक्रम हैं।

व्यापार की समृद्धि प्रचार पर निर्भर है। वस्तु विशेष का जितना अधिक प्रचार होगा, उतनी ही अधिक उसकी मांग बढ़ेगी। दूरदर्शन Advertisement का श्रेष्ठ माध्यम है, वस्तु-विशेष की माँग पैदा करने का उत्तम उपाय है। दूरदर्शन के विज्ञापन दर्शक के हृदय पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं, जो जरूरतमन्दों को वस्तु-विशेष खरीदते समय प्रचारित वस्तु खरीदने के लिए प्रेरित करते हैं।

जैसे-जैसे मानव की व्यस्तता बढ़ेगो, मानसिक तनाव बढ़ेंगे, जीवन में मनोरंजन की अपेक्षाएँ बढ़ेगी, वैसे-वैसे दूरदर्शन अपने में गुणात्मक सुधार उत्पन्न कर मनोरंजन का सशक्त साधन सिद्ध होता जाएगा।

[Essay 3] दूरदर्शन और मनोरंजन (Essay on Television in Hindi Language)

मनोरंजन जीवन के लिए अनिवार्य तत्त्व है। इसके अभाव में प्राणिमात्र मानसिक विकारों से ग्रस्त हो जाता है। टेलीविजन का महत्व हमारे जीवन में ( role of Television in our life) उतना ही महत्वपूर्ण हो गया है। जितना कि हमारी और भी दिनचर्या की चीजें हैं। ऐसा लगता है मानो इसके बिना आपके स्वभाव में रुखाई और चिड़चिड़ापन आ जाता है; जीवन का संतुलन बिगड़ जाता है तथा जीवन नीरस हो जाता है।

बीसवीं शताब्दी की छठी दशाब्दी से पूर्व मनोरंजन के प्रमुख साधन थे-चित्रपट, आकाशवाणी, पॉकिट उपन्यास, सरकस, रंगमंचीय नाटक । ताश, कैरम, शतरंज, नौकाविहार तथा पिकनिक में भी मानव ने पर्याप्त आनन्द लूटा। जीवन में जूझते मानव को समय के अभाव की प्राचीर लाँघना कठिन हो रहा था। समय के अभाव में चित्रपट का सशक्त साधन प्रतिदिन उसका मनोरंजन करने में असमर्थ था। आकाशवाणी का मनोरंजन, सुलभ और सशक्त तो था, किन्तु मात्र ध्वनि पर आधारित था। नयनों का सुख उसमें कहाँ था? उधर, ताश और कैरम के लिए साथी चाहिएँ।

दूरदर्शन चित्रपट का संक्षिप्त रूपान्तर चित्रपट देखने के लिए टिकट खरीदने की परेशानी, सिनेमा-घर तक पहुंचने के लिए! मन का झंझट, हॉल के दमघोटू वातावरण की विवशता, अनचाहे और अनजाने व्यक्ति क अनायास दर्शन, समाज-द्रोही दर्शकों की अश्लील-हरकतें, सबसे छुट्टी मिली। घर बैठे चित्रपट का आनन्द प्रदान किया दूरदर्शन ने।

अहर्निश व्यापार के झंझटों से बेचैन व्यापारी, दिन भर दफ्तरी-फाइलों से सिर मारता लिपिक, बच्चों को पढ़ाते-पढ़ात सिरदर्द मोल लेने वाला शिक्षक, कठोर परिश्रम से क्लांत मजदूर और दिन-भर गृहस्थी के झंझटों से पीड़ित गृहिणी, मनोरंजन के लिए जब टेलीविजन खोलते हैं, तो थकान रफू-चक्कर हो जाती है, सिर-दर्द तिरोहित हो जाता है; मानव मनोरंजन-लोक में डूबकर रोटी-पानी भी भूल जाता है।

खेलना-कूदना बच्चों का स्वभाव है। गली के असभ्य साथियों से स्वभाव में विकृति आती है। गालियाँ और गंदा व्यवहार सीखता है। दूरदर्शन ने कहा, ‘भोले बालक! खेलकूद के मनोरंजन को छोड़ मुझसे दोस्ती का हाथ बढ़ा। मैं तेरा ज्ञानवर्धन भी करूंगा और आनन्द भी प्रदान करूँगा।

रोगी एक ओर रोग से बेचैन है और दूसरी ओर सेवाधारियों के व्यवहार से परेशान। बिस्तर पर लेटे-लेटे समय कटता नहीं। ऊपर से ‘मूड’ खराब) दूरदर्शन ने सुझाव दिया-तन का उपचार डॉक्टर करेगा और मन का मैं करूँगा। तू अपना टी.वी. ऑन कर और देख ‘मूड’ ठीक होता है नहीं।

दूरदर्शन के सर्वाधिक प्रिय कार्यक्रम हैं-फिल्म और उसके गीत । प्रसार-भारती टी.वी. के अतिरिक्त अन्य टी.वी. चेनल जैसे सोनी टी.वी., जी.टी.वी., स्टार मूवी प्रतिदिन 2-2, 3-3 चित्र दिखाते हैं। आपको एक चित्र पसंद नहीं, चेनल बदलिए दूसरी देख लीजिए। ‘तू नहीं, और सही, और नहीं, और सही।’

सिने गीत का करिश्माती मनोरंजन की जादू की छड़ी बन गया है। चित्रहार, रंगोली, ऑल दी बैस्ट, हंगामा अनलिमिटेड, अन्त्याक्षरी आदि दसियों नामों से यह जादुई छड़ी घूमती रहती है। आपको रसगुल्ले-सा मिठास देती है। गोल-गप्पों-सा चटपटा स्वाद देती है। आलू की टिकिया या समोसे-सा जायका प्रदान करती है। इनके अतिरिक्त प्राइवेट अलबम के गीत सोने में सुहागा सिद्ध होते हैं।

आज का तथाकथित सभ्य समाज अभिनेता-अभिनेत्रियों के दर्शन कर अपने को कृतार्थ समझाता है। उनके मुख से निकले शब्दों को वेद-वाक्य मानता है। उनके जीवन की विशेषताओं और स्वभाव की रंगीनी को देखकर उसका मन भी रंग जाता है । दूरदर्शन के विभिन्न चैनल, अपने विविध कार्यक्रमों द्वारा किसी न किसी अभिनेता-अभिनेत्री का दर्शकों से परिचय करवाते रहते हैं। साक्षात्कार के समय उनके जीवन से सम्बन्धित फिल्म के अंशों को प्रमाण रूप में दिखाकर उस साक्षात्कार को अधिक रसीला बना देते हैं।

सुप्रसिद्ध उपन्यासों तथा कहानियों पर बने एपीसोड दूरदर्शन मनोरंजन को द्विगुणित करते हैं। प्राय: आधा-आधा घंटे के ये एपीसोड दर्शक की रुचि को विभिन्न व्यंजनों से तृप्त करते रहते हैं। ‘न्याय’, ‘बंधन’ जैसे सोप ओपरा तो प्रतिदिन धारा-प्रवाह में बहकर नदी स्नान का-सा आनन्द प्रदान करते हैं। ये एपीसोड काल्पनिक ही हों, ऐसा नहीं। सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक एपीसोड भी जीवन को तरंगित करते रहते हैं। ‘रामायण, महाभारत’ और ‘चाणक्य’ की शृंखलाओं ने तो दर्शकों की चाहत कीर्तिमान ही तोड़ दिए थे और अब भी पुनः-पुनः देखकर मन नहीं भरता।

उपन्यासों के अतिरिक्त देश-विदेश की विभिन्न भाषाओं के नाटक तथा एकांकी भी अभिनीत होते हैं। ये नाटक-एकांकी भी भरपूर मनोरंजन से युक्त होते हैं।

नृत्य-संगीत में लोक नृत्य, शास्त्रीय नृत्य, पॉप नृत्य, तथा पाश्चात्य शैली के नृत्यों के साथ-साथ उभरता संगीत मन को मोह लेते हैं। खेल-प्रेमियों के लिए खेलों की दुनिया का मनोरंजन फिल्म के मनोरंजन से कम रोचक नहीं होता। क्रिकेट, हॉकी, बालीबाल, फुटबॉल, टेनिस, तैराकी, कुश्ती आदि खेलों के मैच जब दूरदर्शन पर आते हैं तो दर्शक उन्मत्त हो टी.वी. पर आँख गड़ाए रहते हैं। एशियाड तथा ओलम्पिक खेलों के करिश्में देखने को तो आँखें तरसती हैं। आँखों का टी.वी. पर आँख गड़ाना, तरसना दूरदर्शनीय मनोरंजन का प्रमाण ही तो है।

मनोरंजन अर्थात् मन का रंजन जिससे हो, वह मनोरंजन। दूरदर्शन मनोरंजन का सर्वश्रेष्ठ साधन ही नहीं, मनोरंजन का विश्वकोश है, जिसके हर पृष्ठ पर रंजन है, हास्य झलकियाँ हैं, हृदय को गुदगुदाने की शक्ति है।

[Essay 4] दूरदर्शन और ज्ञानवर्धन

चेतन अवस्था में इन्द्रियों और मन द्वारा बाहरी वस्तुओं, विषयों आदि का सन को होने वाला परिचय या बोध ज्ञान है। किसी बात या विषय के संबंध में होने वाली वह तथ्यपूर्ण, वास्तविक और संगत जानकारी या परिचय जो अध्ययन, अनुभव, निरीक्षण और प्रयोग आदि के द्वारा प्राप्त होता है, ज्ञान है। कुछ जानने, समझने आदि की योग्यता, वृत्ति या शक्ति ज्ञान है। ज्ञान की वृद्धि या विकास ज्ञानवर्धन है।

ज्ञान अज्ञान को दूर करता है। अच्छे-बुरे की पहचान करवाता है। सत्य से साक्षात्कार करवाता है। जीवन में आने वाले शारीरिक और मानसिक तापों के हरण का मार्ग प्रशस्त करता है। उन्नति, प्रगति और उज्ज्वल जीवन के लिए पथ-प्रदर्शित करता है। इसलिए जीवन में ज्ञान का महत्त्व है, उसका वर्धन मानव का दायित्व है।

ज्ञानवर्धन के चार मार्ग बताए जाते हैं-अध्ययन, अनुभव, निरीक्षण और प्रयोग। कुछ जानने, समझने आदि की योग्यता, वृत्ति इन चारों बातों पर निर्भर है। दूरदर्शन वह चौराहा है, जहाँ ज्ञान के चारों मार्ग मिलते हैं। इसलिए दूरदर्शन ज्ञानवर्धन की गंगोत्री है। जिस प्रकार गंगोत्री से निकलकर गंगा भारत-भूको तृप्त करती है, पवित्र करती है, उसी प्रकार दूरदर्शन जनमानस में ज्ञान की गंगा बहाकर पवित्र करता है। इसी जीवन में ज्ञान के कपाट खोलकर सत्, चित् और आनन्द के दर्शन करवाता है।

जीवन में उम्र के बढ़ने के साथ-साथ जो वस्तु मिलती है, उसका नाम है अनुभव। जिस जीवन से आप गुजरे नहीं, जिस कष्ट को आपने भोगा नहीं, जो गलतियाँ आपने की नहीं, उसका अनुभव आपको नहीं होगा।बाँझ को प्रसववेदना का क्या अनुभव? लघुजीवन में अतिलघु अनुभव द्वारा ज्ञान से परिचय कैसे हो।अकबर इलाहाबादी तो अनुभव की कमी पर रो पड़े- कह दिया मैंने हुआ तजर्बा मुझको तो यही।

तजर्बा हो नहीं चुकता है कि मर जाते हैं। संसार के दो महत्त्वपूर्ण अंग है-सृष्टि और प्रकृति। इन दोनों का पूर्ण तो क्या सामान्य निरीक्षण भी इस जीवन में असम्भव है, दुर्लभ है।अतः निरीक्षण से ज्ञान प्राप्ति बहुत सीमित है।

ज्ञान का चौथा स्रोत है प्रयोग। कोई नई बात ढूंढ निकालने के लिए की जाने वाली कोई परीक्षणात्मक क्रिया अथवा उसका साधन प्रयोग है। किसी प्रकार की क्रिया का प्रत्यक्ष रूप से होने वाला साधन प्रयोग है। प्रयोग बहुत दुस्साहपूर्ण होता है और जीवन में रिस्क (दुस्साहस) लेने से आदमी कतराता है। फिर कितने रिस्क लेकर आदमी कितना ज्ञान प्राप्त करेगा? अत्यन्त सीमित।

दूरदर्शन ज्ञान का विश्व-कोश है । हर बुराई और अच्छाई का व्याख्याता है। करणीयअकरणीय को बताने वाला दार्शनिक है। जीवन के पुरुषार्थों के कार्यान्वयन का प्रेरक है। प्रकृति के रहस्यों और सृष्टि के समाचारों की मुँह बोलती तस्वीर है।

नगर ही नहीं प्रांत, देश, विदेश; पृथ्वी ही नहीं पाताल और अंतरिक्ष; भू की ही नहीं अन्यलोकों की;मानव ही नहीं प्राणि मात्र की अद्यतन, नवीनतम खबरों की जानकारी देकर दूरदर्शन करेण्ट नॉलिज’ (अद्यतन ज्ञान) प्रदान करता है । करेन्ट को अधिक करेन्ट बनाने के लिए हर 60 मिनिट बाद अपना कर्तव्य पूरा करता है। साथ ही अपनी खबरों के सत्यापन के लिए तत्सम्बन्धी चित्र भी दिखाता है। इससे अधिक प्रामाणिक और करेन्ट (सद्य) ज्ञान कहाँ से मिलेगा? राष्ट्र या विश्व में कोई अनहोनी घटना घटित हो जाए तो दूरदर्शन अपना कार्यक्रम रोक कर भी उस घटना की सूचना दर्शक को देता है । जैसे-इन्दिरा जी की हत्या की सूचना।

समाचार अफवाह भी हो सकते हैं, असत्य भी। पर जब आप अपनी आँखों से समाचारों सम्बन्धी घटनाओं को देख रहे हैं तो फिर प्रत्यक्षं किम् प्रमाणम् ?’ शेयर बाजारों के सूचकांक, दैनिक तापमान के उतार-चढ़ाव, गुमशुदा व्यक्तियों के बारे में सचित्र विवरण, ‘नौकरी के लिए स्थान खाली हैं’ के लाभों (नियोजन) की सूचना देना, करों के भुगतान का स्मरण करवाना भी दूरदर्शन द्वारा ज्ञानवर्धन में शामिल है।

देश का एक बड़ा भाग ग्रामों में बसता है। खेतीबाड़ी उसका व्यवसाय है। गाँव और खेती की छोटी-से-छोटी बात को विस्तारपूर्वक समझा कर यह कृषकों का ज्ञानवर्धन करता है। सच तो यह है ग्राम-विकास में दूरदर्शन का बहुत बड़ा योगदान है।

हमारा देश दर्शनीय स्थलों का आगार है। कला-कृतियों का भण्डार है। विश्व का महान् आश्चर्य ‘ताजमहल’ हमारे राजपूत राजाओं का करिश्मा है । इन सबको देख पाना इस जीवन में सामान्य व्यक्ति के लिए सम्भव नहीं। दूसरे, आप देखने भी गए तो उसका ऊपरी दर्शन मात्र कर सकेंगे। उसके निर्माण का रहस्य, कला का रोमांच, पृष्ठभूमि का इतिहास आप नहीं जान पाएंगे। मंदिर हो या मठ, ताजमहल हो या कश्मीर स्थित अमरनाथ का मंदिर, दक्षिणी-समुद्र-स्थित विवेकानन्द-शिला हो या अमृतसर का स्वर्ण मन्दिर दूरदर्शन इनके पूरे इतिहास के साथ-साथ कला विशेषताओं का दिग्दर्शन करवाएगा।

विदेश-भ्रमण कितने लोग कर पाते हैं। विश्व की कला-कृतियों को कितने लोग देख पाते हैं ? उत्तर है मुट्ठीभर । दूरदर्शन विश्व के प्रत्येक राष्ट्र के दर्शन करवाएगा, उनके रहनसहन, रीति-रिवाज़, आस्थाओं-मान्यताओं, सभ्यता और संस्कृति का विस्तार से सचित्र परिचय करवाएगा।ज्ञान बढ़ाएगा आपका।घोड़ी नहीं चढ़े तो बारात तो देखी है की कहावत सिद्ध करेगा।

स्वस्थ रहने के गुर जनता को देकर दूरदर्शन उनके स्वास्थ्य की चिंता करता है ।व्यायाम की उपयोगिता और योग के लाभ बताता है। भोजन द्वारा स्वास्थ्य की शिक्षा देता है। प्रकृति के रहस्य-रोमांच का ज्ञान पुस्तकों में मिलता है या उन शूरवीरों को है जिन्होंने जान की बाजी लगाकर वहाँ तक पहुँचने की चेष्टा की है। दूरदर्शन न केवल प्रकृति के श्रृंगार पहाड़ (एंवरेस्ट, नीलकंठ) और जलनिधि समुद्र के रहस्य-रोमांचों के दर्शन तथा परिचय करवाता है अपितु अन्य लोकों (चन्द्रलोक, मंगललोक) के दर्शन भी करवा कर हमारे ज्ञान को विस्तृत करता है। डिस्कवरी अर्थात् अनुसन्धान द्वारा समस्त भूमण्डल के सागरों, पर्वतों, वनों और उनमें रहने वाले अनदेखे जीवों के दर्शन कराता है।

महापुरुष किसी भी राष्ट्र की धरोहर हैं। उनकी जयन्तियाँ तथा पुण्यतिथियाँ मनाना राष्ट्र की ओर से श्रद्धांजलि अर्पण है। दूरदर्शन महापुरुषों के जीवन पर प्रकाश डालकर, गोष्ठियाँ आयोजित कर जनता को उनके द्वारा किए गए महान् कार्यों की जानकारी देता है। उन्हें उन जैसा बनने की प्रेरणा देता है।

सच तो यह है कि दूरदर्शन स्रष्टा से सृष्टि तक, जीवन से लेकर मृत्यु तक, आविष्कार से लेकर उपयोग तक, परिवार से लेकर समाज तक, धर्म से लेकर राजनीति तक, कला से लेकर विज्ञान तक, विश्व से लेकर ब्रह्माण्ड तक, सबका ज्ञान परोसने वाला अद्भुत यान्त्रिक साधन है।

[Essay 5] दूरदर्शन का जीवन पर प्रभाव

दूरदर्शन का भारतीय पारिवारिक जीवन पर अद्भुत तथा आश्चर्यजनक अमिट प्रभाव पड़ रहा है। वह सुखद भी है और दुःखद भी। एक ओर बहू के चूंघट का लम्बा परदा उठा है तो देवर-जेठ-ननदोई में भाई तथा ससुर में पिता के दर्शन कर मन की बात कहने का साहस प्रकट हुआ है। शिशुओं के पालन-पोषण, परिवार के खान-पान, रहन-सहन और जीवन-शैली में गुणात्मक सुधार हुआ है तो पर्व-त्योहारों के मनाने के प्रति आस्था बढ़ी है। धार्मिक अंध-विश्वास के प्रति अनास्था जगी है। आडम्बर और कपटपूर्ण प्रतीकों से विश्वास हिला है।

दूरदर्शन ने अपने विविध कार्यक्रमों द्वारा ज्ञान का जो प्रकाश फैलाया है, उससे पारिवारिक जीवन प्रकाशित हुआ है। उससे व्यक्ति के सोच-समझ का दायरा बढ़ा है। अच्छे-बुरे की पहचान बनी है। तन से स्वस्थ और मन से प्रसन्न रखने की तथ्यपूर्ण संगत जानकारी से परिवार परिचित हुआ है। सामाजिक बुराइयों से बचने लगा है।

पुरुष और नारी की परस्पर सहमति, अनुशासन, आत्मसमर्पण तथा कर्तव्यपालन पारिवारिक जीवन में सुख, शांति और उन्नति के सोपान हैं। औरों को खिलाकर खाना, मर्यादित काम और शृंगार, शिखर पुरुष (परिवार प्रमुख) का आदरपूर्ण अनुशासन, नैतिकता के प्रति आग्रह, परम्पराओं का सम्मान, पारस्परिक सहयोग से चलने की प्रेरणा में पारिवारिक जीवन का सौन्दर्य है। दूरदर्शन के अनेक कार्यक्रमों से इन बातों पर अच्छा प्रभाव भी पड़ा है।

दूसरी ओर, दूरदर्शन आज यथार्थ के नाम पर या खुलेपन के नाम पर परिवार को जो कुछ परोस रहा है उसका प्रभाव विष से भी अधिक विषाक्त है, नीम से भी अधिक कडुआ है और साइनोमाइड से भी अधिक मारक है। उसके अधिकांश कार्यक्रम पारिवारिक व्यूहरचना को तोड़ने की शिक्षा देते-देते परिवार के नैतिक मूल्यों को बेरहमी से रौंदते हैं। अनुशासन के प्रति विद्रोह के बीज बोते हैं तथा शालीनता, मान-मर्यादा की पावन भावना को कुचलते हैं। परिवार के प्रत्येक घटक में उसके अहं को तीव्र कर पारिवारिक सोच, समझ, समर्पण और समझौते की अन्त्येष्टि करते हैं। वासना और नग्नता का गन्दा नाला बहाकर, जीवन को कलुषित करते हैं।

दूरदर्शन जब अश्लील तथा कामुक दृश्यों, गीतों, संवादों की चासनी खुलेआम परोसता है तो विश्वामित्र की तपस्या भी भंग हो जाती है। नारद का हृदय भी डोल जाता है। नारी काअर्ध-नग्न क्या लगभग नग्न (केवल नितम्ब और स्तनों पर हलका-सा आवरण) शरीर, विविध रूप की उत्तेजनात्मक मुद्रा से वक्षों की मादक थिरकन, मदभरे नयनों का कटाक्ष, कूलहे मटकाने की शैली, शयन-दृश्य पारिवारिक जीवन में बची लाज की चिंदी-चिंदी उघाड़ चुके हैं। चेहरों से शर्म का परदा उतार चुके हैं। बहिन, भाभी, साली-सलहज तथा मित्रों के प्रति वासनात्मक लालसा-पिपासा दूरदर्शन द्वारा प्रदत्त मूल्यों की देन है।

इतना ही नहीं, जब दूरदर्शन सुपरहिट मुकाबला के नाम पर अश्लील गीतों का प्रदर्शन बार-बार करता है तो अबोध बालक भी अनजाने ‘चोली के पीछे क्या है ?’, ‘दरवाजा बंद कर दो’, चुम्मा चुम्मा दे दे’ गाने लगता है। कामसूत्र कंडोम का विज्ञापन देखता है तो संभोग-क्रिया से अनभिज्ञ बालक-बालिका भी माता-पिता से पूछ बैठते हैं, ‘यह निरोध क्या चीज है? किस काम आता है?’

नग्नता चाहे दृश्य की हो या गीत की जब तथाकथित कलात्मक रूप में प्रस्तुत होती है तो वह सृजनात्मकता का रूप लेती है, लेकिन जब वह प्रकृतवादी रूप में (ज्यों की त्यों) अभिव्यक्त होती है तो वह उससे भी अश्लील हो जाती है। घृणित होते हुए भी इसकी उपेक्षा इसलिए नहीं कर पाते क्योंकि उसका सीधा प्रभाव परिवार जन के चेतन अथवा अचेतन मन पर पड़ता है। इस प्रकार दूरदर्शन अश्लीलता को पारिवारिक मान्यता दिला रहा है।

दूरदर्शन की पारिवारिक जीवन को महत्त्वपूर्ण देन है ‘अहम्।’ अहम् अपने आप में गर्वपूर्ण तत्त्व है पर परिवार-जनों की यह धारणा कि मेरी भी कुछ सत्ता है’, पूरे परिवार को विद्रोह के कगार पर खड़ा कर देती है। अपनी सत्ता का भान कर्तव्य से शून्य अधिकार की माँग करता है। अधिकार–पूर्ति न होने पर परिवार में मन-मुटाव होता है। आज दूरदर्शन की अनुकम्पा से घर-घर महाभारत मचा है। परिवार के शिखर-पुरुष के अनुशासन की अवहेलना हो रही है।

तृष्णाओं की जागृति दूरदर्शन का विनाशकारी प्रसाद है। परिवार-जन जो कुछ दूरदर्शन पर देखते हैं, उसे प्राप्त करने तथा वैसा बनने की चेष्टा करते हैं। आय कम, साधन अपर्याप्त हों तो इच्छा पूर्ति किस प्रकार हो सकती है ? झूठ बोलना, प्रवंचना देना, चोरी करना, गलत काम करना, पापवृत्ति से पैसा कमाना, दुष्प्रवृत्ति में पड़ना दूरदर्शन-शैली में लालसा पूर्ति का परिणाम है। परिवार-जीवन की यह विडम्बना दूरदर्शन की ही देन है।

दूरदर्शन के आकर्षण से विद्यार्थी के अध्ययन में बाधा पड़ती है। घर के काम की उपेक्षा होती है। माता-पिता की आज्ञा की अवहेलना होती है। समयोचित कार्य करने में अनिच्छा होती है। महत्त्वपूर्ण कार्य की प्राथमिकता रुक जाती है। आलस्य और प्रमाद जीवन पर हावी होते हैं।

नैतिकता को तोड़ता दूरदर्शन, अंकुश-विहीन अनुशासन को जन्म देता है। फैशनी सौन्दर्यप्रियता को उच्छृखल काम-विलासिता में डुवोता है। चकाचौंध की दुनिया में घसीट कर विवेक के नेत्रों को फोड़ देता है।

दूरदर्शन ने अपने कार्यक्रमों द्वारा पारिवारिक जीवन में एक हलचल पैदा करके उसे जबरदस्त तरीके से बदला है। इस बदलाव का प्रभाव हमारे पारिवारिक मूल्यों पर निःसन्देह पड़ रहा है। अच्छा कम और बुरा ज्यादा।

दूसरी ओर, दूरदर्शन का उपयोग विद्यार्थी जीवन में पढ़ाई के समकक्ष (advantage of television in education) बहुत ही महत्वपूर्ण कहा जा सकता है क्योंकि दूरदर्शन के माध्यम से हम समाचार सुनकर वर्तमान में अपने देश या फिर विदेश में चल रही घटनाओं के बारे में जान सकते हैं। विश्व में कहां कौन सा खेल खेला जा रहा है। ओलंपिक ने किसने कितना पदक जीता। यह जानकारी प्राप्त करके प्रतियोगी परीक्षा में तैयारी करने वाले विद्यार्थी इसका उत्तर अपनी उत्तर पुस्तिका में लिखकर अच्छा अंक प्राप्त कर सकते हैं। जिससे उनके जीवन मैं नौकरी का आगमन हो सके और इसके अलावा वह देश विदेश की खबरें जो कि वर्तमान समय में चल रही है उससे वह अवगत रह सकें।

[Essay 6] दूरदर्शन : एक अभिशाप (Disadvantages of Television)

दूरदर्शन का प्रारम्भ भारत में 15 सितम्बर, 1959 से समझना चाहिए, जब तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्रप्रसाद ने आकाशवाणी के दूरदर्शन विभाग का उद्घाटन किया था। चार दशक की यात्रा में दूरदर्शन का विकास इस तेजी से हुआ है कि आज करीब छह करोड़ टी. वी. सेट, साढ़े छह सौ लघु शक्ति ट्रांसमीटर, तीन-सौ सैटलाइट, करीब एक लाख डिश एंटेना और केबल के तंत्र ने मिलकर भारत का चेहरा ही नहीं बदला, बल्कि रोटी, कपड़ा और मकान की तरह, यह भी जीवन की आवश्यकता बन गया है।

चौबीस घंटे मनोरंजन देने की विवशता के कारण टी. वी. के नए खुलते चैनल तथा विदेशी चैनलों ने टी. वी. के विकास की विविधता तथा टेक्नोलॉजी में उत्तरोत्तर प्रगति की है। उपग्रह से सम्बद्धता ने टी. वी. के विकास में अनुपम सहयोग दिया है, प्रसारण की क्षमता ने अद्भुत शक्ति प्रदान की है, पर यह वरदान कम, अभिशाप अधिक बन रहा है। टी.वी. के प्रिय कार्यक्रम का समय है। मेहमान आ गए। बच्चों पर इसका प्रभाव (effect of television on children) और परिवारजनों का मुँह उतर गया। मन ही मन दुआ माँग रहे होते हैं कि यह खिसके तो कार्यक्रम का आनन्द लें। कान में फुसफुसाहट शुरू हुई। ‘टी.वी. लगा लूँ, मैच आ रहा है।’ बेशरम हुए तो बिना पूछे टी. वी. ‘ऑन’ कर देंगे। आज पूरी की पूरी पीढ़ी टी. वी. के मादक नशे से झूम रही है।

परिणामत: विद्यार्थी अध्ययन में कम, टी. वी. में ज्यादा ध्यान केन्द्रित करता है। पुत्रपुत्रियाँ टी. वी. के कारण माता-पिता की आज्ञा की अवहेलना करती हैं। सिनेमा-गृहों को टी. वी. ने खाली करवाया तो नाट्य-शालाओं के दर्शनों को अवरुद्ध किया। साहित्यिक, सांस्कृतिक पत्रिकाओं को तो जीवन-निकाला ही दे दिया। दैनंदिन-जीवन में टी. वी. के संक्रामक विषाणुओं ने जीवन की सोच, समझ, सभ्यता और संस्कारों को ही बदल दिया।

आज टी. वी. का इतना प्रभाव है कि साप्ताहिक, पाक्षिक, व्यावसायिक और साहित्यिक पत्रिकाओं की बात छोड़िए, दैनिक समाचार-पत्रों में एक पूरा रंगीन पृष्ठ छोटे-बड़े पर्दे के कारनामों को उजागर करता है।

माया नगरी के इस जादूगर के पिटारे में जो सम्मोहक रंग हैं, उसके प्रति आकर्षण क्यों न हो? जब छोटे-परदे से झरती हिंसा, मुक्त यौनाचार और विवाहेतर संबंधों की नईनई व्याख्या प्रस्तुत होती हों। उन्मुक्त काम दृश्य, युवतियों के निर्वस्त्र तन और वैसी भाषा खुले आम टी. वी. के जरिए घर में प्रवेश कर रही हो। वासनापूर्ण संवाद तथा कामोत्तेजक संगीत और गाने मन को गुंजारित कर रहे हों।

सूर्यबाला जी का मत है, ‘मनोरंजन के नाम पर यौन और हिंसा का अबोध बालकों के मन पर जिस तरह घोर कामुक मुद्राओं और चेष्टाओं का विषाक्त नशा पिलाया जा रहा है, उससे तो यही लगता है हँसते-खेलते, उम्र की दहलीज चढ़ते मासूम बच्चों को जैसे वेश्याओं के कोठों पर ला बिठाया गया है। सेक्स और हिंसा की ओवर डोज’ पाए हुए किशोर और युवा, आज भयावह और रोंगटे खड़े कर देने वाली अपराधी वृत्तियों की ओर धड़ल्ले से बढ़े रहे हैं।’

सुदर्शना द्विवेदी जी का मानना है, ‘जिस किस्म के बदतमीज, बदजबान, असंस्कारों और चरित्रशून्य किशोरों की उपस्थिति इन तमाम धारावाहिकों में दर्ज हो रही है, उससे दोहरा असर हो रहा है। एक ओर मूल्यहीनता की पढ़ाई ये किशोर बेहद तत्परता से पढ़ रहे हैं और नजीर (प्रमाण) के तौर पर इनके वाक्यों का इस्तेमाल भी कर रहे हैं। दूसरी ओर अभिभावकों को दिखाया जा रहा है कि यही है असली किशोर और अगर आपका किशोर इनसे कुछ बेहतर है यानी गीता और संगीता से इश्क लड़ाने और मुक्का मार कर पड़ोस के राजू की आँख फोड़ने के अलावा कुछ पढ़ भी लेता है तो आप अपने भाग्य सराहें।’

परिणामत: युवक-युवतियाँ कॉलिजों में पढ़ने कम दोस्ती-दुश्मनी, प्यार-मोहब्बत निभाने ज्यादा जाते हैं। सिगरेट और ड्रग्स, बियर और पब, छात्र-जीवन के जीवनदायी टॉनिक हैं। इससे आप खुद पता लगा सकते हैं कि टीवी देखना आपके लिए अच्छा है या बुरा।

स्थिति की भयावहता जिस तेजी से खतरे के बिंदु को पार करती जा रही है, उसमें दूरदर्शन के विज्ञापन भी कम दोषी नहीं हैं। तथाकथित साहसिक कारनामों और भयप्रद दृश्यों तथा सुरा-सुन्दरी के अश्लील चित्रों का जो एलबम विज्ञापन प्रस्तुत कर रहे हैं, उससे प्रेरित होकर किशोर-किशोरियाँ अपने जीवन से खेल रहे हैं। मृत्यु का आह्वान कर रहे हैं।

भाषा के नाम पर हिन्दी को विकृति और खिचड़ी भाषा का प्रश्रय तथा धारावाहिकों के परिचय में मुख्यत: अंग्रेजी भाषा का प्रयोग राष्ट्रभाषा का अपमान है।अकारण ही अंग्रेजी की गुलामी ओढ़ाने की चाल है। जाति-समाज की संस्कृति, आचार-विचार और जीवनमूल्य व्यवस्था नकारने की साजिश है।

अन्त्याक्षरी हमारी काव्य-सम्पदा का अंग है। उसका फूहड़ रूप जो सिनेमा गीतों में उतरा है, वह नई पीढ़ी को साहित्य से दूर करने का भयंकर षड्यंत्र है।

दूरदर्शन और बच्चों (television and children) का संबंध जैसे लगता है अन्योन्याश्रित संबंध बन गया हो। आजकल के बच्चे टीवी के बगैर ना खाना खाना पसंद करते हैं और ना ही टीवी के बिना रह सकते हैं। वह हमेशा अपना कार्टून नेटवर्क जमाए रहते हैं। जिनसे उनके आंखों के साथ-साथ उनकी बुद्धि पर भी असर पड़ता है। आप खुद सोच सकते हैं कि टीवी हमारे लिए जितना लाभदायक है उतना हानिकारक भी हो सकता है।

माता-पिता, प्रौढ़जन तथा शिष्ट व्यक्तियों पर संवादों द्वारा जो अपमानित प्रहार किए जाते हैं, वे मानव-मूल्यों को तिरस्कृत करके विद्रोह पैदा करते हैं। आज की युवा पीढ़ी का वृद्ध माता-पिता से विद्रोह टी.वी. प्रभाव का प्रत्यक्ष प्रमाण है।

भारत की 80 प्रतिशत जनसंख्या मध्यमवर्ग या निम्न मध्यमवर्ग का जीवन जी रही है। फैशन, प्रेम, सेक्स, शराब, ड्रग्स और हिंसा के दृश्यों को जब वह प्रतिदिन बार-बार देखती है तो ये सभी.तत्त्व उसके रक्त में समा जाते हैं। कारण, सजीव दृश्यों का मानवमन पर अधिक और स्थिर प्रभाव पड़ता है। इन दृश्यों को जीवन में भोगने के लिए चाहिए पैसा। मन की इच्छा पूरी करने के लिए वह टी.वी. शैली में रिश्वत लेता है, चोरी करता है, डाके डालता है, गुंडागिरी, अपहरण, बलात्कार और हत्या करता है। तस्करी और स्मग्लिग के लिए अपराध-जगत् की शरण लेता है। इस प्रकार दूरदर्शन समाज-द्रोह और राष्ट्र-द्रोह की पाठशाला बन गया है।

दूरदर्शन अप-संस्कृति का प्रतीक बन गया है। मुसलमान बादशाह और अंग्रेजीसाम्राज्य अपने सैंकड़ों वर्षों के शासन-काल में जिस भारतीय संस्कृति को नष्ट नहीं कर सके, जिन उदात्त भारतीय परम्पराओं, मान्यताओं और सिद्धान्तों को खंडित नहीं कर सके, वह काम करने में दूरदर्शन सफलता की सीढ़िया चढ़ रहा है। टी. वी. के कुसंस्कारों के सम्मुख भारतीय-संस्कृति असहाय खड़ी है। भारत माता चीत्कार करते कह रही है-

मैं क्या दूँ वरदान तुम्हें?

आत्मा मेरी अभिशाप दे रही। 

मैं क्या हूँ?

Frequently Asked Questions

पहली बार जनता के लिए टेलीविजन कब लाया गया?

उत्तर: सितंबर, 1928 में

सबसे पहले टीवी स्टेशन को क्या कहा जाता था?

उत्तर: WGY Television

सबसे पहला टीवी किस देश में लाया गया?

उत्तर: जर्मनी, 1929 में

टेलीविजन का पिता किसे कहते हैं?

उत्तर: फिलो टेलर फ़ार्नस्वर्थ (Philo Taylor Farnsworth)

भारत में सबसे पहले टेलीविजन का आविष्कार किसने किया था?

उत्तर: वी शिवकुमारन, 1950 में

टेलीविजन का स्वर्ण युग कब माना जाता है?

उत्तर: 1948 से 1959 के बीच

पहला लाइव टेलीविजन प्रसारण कब हुआ था?

उत्तर: 30 सितंबर, 1929

टेलीविजन पर पहला लाइव प्रसारण किसने किया था?

उत्तर: BBC ने

भारत का पहला टेलीविजन शो कौन था?

उत्तर: हम लोग

उपसंहार (Conclusion of Television)

दोस्तों मुझे आशा है कि आपको हमारा लेख दूरदर्शन पर निबंध हिंदी में (Essay on Television in Hindi) पढ़ कर अच्छा लगा होगा और आपके सभी प्रश्नों के उत्तर मिल गए होगें।

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