बैंक दर क्या है? (What is Bank Rate in Hindi) यह नाम सुनते हैं यह बात तो साफ हो जाती है कि यह दर बैंक से संबंधित है। परंतु बहुत से लोगों को यह पता नहीं है कि बैंक दर क्या है और Bank rate meaning क्या होता है, इसका प्रभाव हमारी अर्थव्यवस्था पर किस प्रकार से पड़ता है जिसका हमारी अर्थव्यवस्था से सीधा संबंध है तो आज इस आर्टिकल के माध्यम से हमलोग जानेंगे की यह क्या है और यह किस प्रकार से काम करता है।
बैंक दर क्या है – Bank Rate in Hindi
Bank Rate System के अन्तर्गत केन्द्रीय बैंक Commercial Bank के बिलों का Re-Discount करता है तथा उन्हें आवश्यकता पड़ने पर Securities के आधार पर ऋण देता है, उसे बैंक दर (Bank Rate) कहते है। बैंक दर को Discount Rate भी कहते हैं।
Bank Rate का प्रयोग Central Bank बहुत समय से करते आ रहे हैं। इसको सर्वप्रथम 1839 में बैंक ऑफ इंगलैण्ड ने प्रयुक्त किया था। ऋणों तथा विनियोगों की निर्धारक Interest Rate पर बैंक दर में परिवर्तन द्वारा प्रभाव डालकर Central Bank अप्रत्यक्ष रूप से साख (Credit) की मात्रा का नियंत्रण करता है, पर माथ ही केन्द्रीय बैंक का स्वीकृत प्रतिभूनियाँ (Securities ) Re-Encash कर उन्हें मुद्रा (Money) भी प्रदान करना है। पुनः Encash rate को बढ़ाकर केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंक को दी जाने वाली साख कीमती (costly) कर देना है।
इस प्रकार कीमत Re-Discount Policy द्वारा निर्मित होने वाली साख की मात्रा पर प्रतिबन्ध लगा देता है। इसी प्रकार slack season में नए साख के निर्माण (Credit Creation) की समस्या के हल के हेतु केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैको के बिलों को नीची दर पर भुना कर उन्हें अधिक मुद्रा लेने के लिए Encourage कर सकता है।
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बैंक दर का प्रभाव (Effect of Bank Rate)
बैंक दर में परिवर्तन का प्रभाव आंतरिक तथा अन्तर्राष्ट्रीय दरो की स्थितियों पर पड़ता है। बैक दर में वृद्धि के फलस्वरुप अन्य अल्पकालीन दरो में वृद्धि हो जाती है तथा Bank अपने Overdraft व Loans पर उच्च दर वसूल करते हैं। बैंको द्वारा अधिक ब्याज दर लिये जाने से बैंक अंशो में कमी हो जाती है। बैंक ऋणों में कमी होने पर उद्योगों में पूंजी कम हो जायेगी। जिसके फलस्वरुप उत्पादन कम हो जायेगा। इससे बेरोजगारी में वृद्धि होगी, क्रय-शक्ति कम होगी एवं मूल्यों में गिरावट होगी। अन्त में बेरोजगारी में निरन्तर वृद्धि से उत्पादन लागत कम होगी। ।
अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में उत्पादन लागत व मूल्यों की गिरावट से निर्यात बढ़ेगा एवं आयात कम हो जाएगा। Interest Rate के High होने से Foreign Capital उस देश को चली जायेगी। इस प्रकार Exchange Rate तथा Payment Rate दोनों ही देश के पक्ष में हो जाएगी एवं देश में स्वर्ण का आयात किया जायेगा।
बैंक दर का महत्व (Importance of Bank Rate)
केन्द्रीय बैंक की पुन: भुनाने की नीति (Redemption Policy) का महत्व त्रिपक्षीय है:
- अधिकृत बट्टा दर (Official Discount Rate) उन दरों को स्पष्ट करती है जिसके आधार पर जनसाधारण विशिष्ट प्रकार की प्रतिभूतियों पर ऋण लेने में असफल हो सकेंगे।
- Re-Discount Rate उस दर को स्पष्ट करती है जिस पर व्यापारिक बैक केन्द्रीय बैंक से ऋण प्राप्त कर सकते है।
- Re-Discount पर देश को Economic Condition के सूचक यंत्र (barometer) का कार्य करती है। यदि केन्द्रीय बैंक discount rate को बढ़ाता है तो यह खतरे की सूचना है जबकि discount rate में कमी स्पष्ट स्थिति की सूचना देती है। बैक दर में वृद्धि व्यापारी समुदाय के लिये लाल बत्ती की चेतावनी की भाँति खतरे के चिन्ह की सूचना देती है एवं आगे बढ़ने के प्रति सावधान करती है। इसके विपरीत बैक दर में कमी उस हरी यत्ती की भाँति है जिससे मह स्पष्ट हो जाता है कि रास्ता साफ है, व्यापारिक गतिविधि की निरंतर आगे बढ़ाते रहो।
बैंक दर के महत्व में कमी (Declining Importance of Bank Rate)
पिछले कुछ वर्षों से विशेषतया Second World War के बाद में बैंक दर का महत्व (जो प्रथम-युद्ध में ही गिरना शुरु हो गया था) credit control के अन्य उपायों द्वारा बहुत कम कर दिया गया है। इसके निम्नलिखित कारण है:
- पिछले कुछ वर्षो से मुद्रा बाजार (Money Market) तथा साख ढाँचा पूर्णतया परिवर्तित हो गया है। पूंजी या स्वर्ण के आगमन के कारण मुद्रा बाजारों में जो तरलता (liquidity) की स्थिति उत्पन्न हो गई है उसके फलस्वरुप अब मुद्रा बाजारों पर ‘बैक दर’ का उतना प्रभाव नहीं पड़ता है जितना कि Open Market Operations का पड़ता है।
- साख नियंत्रण के प्रत्यक्ष उपायों के प्रयोग में वृद्धि होने के कारण भी बैंक दर के महत्व में कमी आई है। पहले अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में Finance Management के लिए सामान्यतया Bills of Exchange का प्रयोग किया जाना था। पर अब इनका महत्व काफी कम हो जाने, Treasury Bills के उच्च नथा साख नियंत्रण के अन्य प्रत्यक्ष उपायों जैसे “Open Market Operations” ने Bank Rate Policy को महत्वहीन बना दिया है।
- International Gold Standard की समाप्ति के साथ ही वास्तव में बैंक दर का प्रयोग भी बहुत कम हो गया है। अब Monetary policy के लक्ष्य के रूप में Exchange Stability पिछड़ गया है एवं इनका स्थान Additional Price Stability ने ले लिया है। महत्व के इस परिवर्तन के फलस्वरुप साख नियंत्रण में बैंक दर का महत्व भी समाप्त हो गया है।
- मुद्रा बाजारों में Liquid Funds की अधिकता ने बैंक दर नीति को अप्रभावी बना दिया है।
- आर्थिक ढाँचा में पड़ी हुई दृढ़ता (Rigidity) ने भी बैंक दर नीति के क्षेत्र को संकुचित कर दिया है। इस नीति की सफलता के लिए आर्थिक ढांचे में उचित स्तरीय सुधार आवश्यक है। अर्थात् मुद्रा दरों तथा साख दशाओं में परिवर्तन होने पर Price, Salary, Production तथा Trade इत्यादि की स्थिति भी परिवर्तित होनी चाहिये।
इस प्रकार बैंक दर flexible conditions में ही सफल हो सकती है। प्रथम विक्ष-युद्ध काम में प्रवृति आर्थिक दृढ़ता की ओर हो जाने तथा विशेष रुप से महान् अवसाद के बाद Planned economy की प्रवृति हो आने से बैंक दर नीति कम प्रभावी हो गई है।
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बैंक दर की सीमाएँ (Limitations of Bank Rate)
वास्तविक साख नियंत्रण के लिए बैंक दर पूरा प्रभाव नहीं डालता है तथा यह अस्त्र अत्यधिक प्रभावशाली नहीं हो पाता है क्योंकि इसकी निम्नलिखित सीमाएँ हैं:
(i) तेजी (Boom) के समय में व्यापारी लोग अधिक लाभ कमाने की आशा में अधिक Interest Rate रहने पर भी अधिक मात्रा में ऋण की माँग करते हैं तथा मन्दी (Depressions) के समय में अधिक हानि होने के डर से कम ब्याज होने पर भी अधिक ऋण की मांग नहीं करते हैं। अत: तेजी मन्दी के समय साख की मात्रा, नियंत्रण में बैंक दर कम नहीं करता है।
(ii) यदि केन्द्रीय बैंक से व्यापारी बैंक ऋण न लें तो बैंक दर Credit Control पर कोई प्रभाव नहीं डालता।
(iii) साख की मात्रा को प्रभावित करने के लिए बैंक दर में कितना परिवर्तन करना पड़ेगा यह कहना कठिन है।
(iv) मुद्रा बाजार पर बैंक दर का प्रभाव अधिक देर से पड़ता है।
(v) साख की इस मात्रा को इस प्रणाली द्वारा घटाया जा सकता है परन्तु साख की मात्रा बढ़ाने में यह प्रणाली असफल सिद्ध होती है। बैंक दर को कम करने पर ही साख की मात्रा बढ़ायी जा सकती है परन्तु व्यापारिक बैंक Market Rate में उतनी कमी नहीं करते जिससे उनका प्रबन्ध एवं संचालन व्यय ही पूरा हो सके। इस प्रकार बैंक दर को एक निश्चित सीमा से कम करने पर Market Rate से इसका सम्बन्ध टूट जाता है और यह प्रभावहीन हो जाता है।
बैंक दर की सफलता के तत्व (Requisites of the Bank Rate system)
- देश के मुद्रा बाजार को सुसंगठित होना आवश्यक है। क्योंकि बैंक दर का बाजास्दर पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है।
- बैंक दर के परिवर्तन के साथ ही देश के व्यापार, उत्पादन, पूँजी, व्यय-मूल्य आदि को भी प्रभावित होना चाहिए।
- बैंक दर का प्रयोग साख की मात्रा घटाने या बढ़ाने के प्रारम्भिक काल में ही करना चाहिए।
- देश का Opinion Bank Rate के अनुकूल होना चाहिए।
Bank Rate तथा Market Rate में अंतर
Market Rate वह है जिस दर पर व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों के बिलों का बट्टा करते है तथा अच्छी जमानतों पर ऋण देते हैं। बैंक दर वह है जिस पर केन्द्रीय बैंक अपने व्यापारिक बैंकों के बिलों को Re-discount करते हैं तथा Securities के आधार पर ऋण देते हैं। साधारणतः बैंक दर Market Rate से ऊंची रहती है। दोनों दरों में बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध है। अत: बैंक दर के बढ़ने से Market Rate भी बढ़ जाती है तथा बैंक दर घटाने से Market Rate घट जाती है।
बैंक दर में कमी या वृद्धि कर केन्द्रीय बैंक Market Rate को भी प्रभावित करता है। इस तरह ऋण की माँग करनेवालों के लिए ऋण सस्ता या महंगा बनाकर साख की मात्रा को नियंत्रित करता है।
साख का विस्तार यदि देश में अधिक हो जाता है तो केन्द्रीय बैंक, बैंक दर को बढ़ा देते हैं, जिसके फलस्वरूप अन्य Commercial Bank भी Market Rate को बढ़ा देते हैं क्योंकि ऋण के लिए वे केन्द्रीय बैंक पर निर्भर करते हैं। Market Rate बढ़ने से व्यापारियों एवं उद्योगपतियों के लिए ऋण अधिक महँगा हो जाता है। फलत: वे ऋण की माँग कम कर देते हैं तथा साख नियंत्रण हो जाता है।
इसके विपरीत बाजार में साख की कमी होने पर बैंक दर को घटा दिया जाता है। बैंक दर घट जाने से व्यापारी एवं उद्योगपतियों को ऋण कम Market Rate पर मिलने लगता है और वे साख (ऋण) की माँग बढ़ा देते हैं। इससे साख का विस्तार (Expansion of credit) हो जाता है।
Frequently Asked Questions
उत्तर: रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया
उत्तर: 4.25 प्रतिशत
उत्तर: रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट
आज आपने क्या सीखा?
मुझे उम्मीद है कि आप कोई मेरी आर्टिकल बैंक दर क्या है? (What is Bank Rate in Hindi) जरूर पसंद आई होगी। मेरी हमेशा से यह कोशिश रहती है कि Readers को बैंक दर की परिभाषा (Bank Rate Definition) के विषय में पूरी जानकारी दी जाए। जिससे उन्हें किसी दूसरे Sites या इंटरनेट में उस Article के बारे में खोजने की जरूरत ना हो।
इससे आपके समय की बचत भी होगी और एक ही जगह पर सभी Information आपको मिल जाएंगे। यदि आपके मन में इस आर्टिकल को लेकर कोई Doubt है या आप चाहते हैं कि इसमें कुछ सुधार होना चाहिए तो आप हमें Comment करके बता सकते हैं।
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