बाढ़ पर निबंध हिंदी में | Essay on Flood in Hindi

हेलो दोस्तों, आज हमलोग इस लेख में बाढ़ पर निबंध हिंदी में (Essay on flood in hindi) पड़ेंगे जो कि आपको Class 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 व अन्य competitive examination जैसे कि SSC, UPSC, BPSC जैसे एग्जाम में अत्यंत लाभकारी साबित होंगे। बाढ़ पर निबंध (Flood essay in Hindi) के अंतर्गत हम बाढ़ से संबंधित पूरी जानकारी को विस्तार से जानेंगे इसलिए इसे अंत तक अवश्य पढ़ें।

Short Essay on Flood 

प्रकृति के मन मुग्धकारी सौंदर्य में हम इतने खो जाते हैं कि हम उसके इस रूप की कल्पना भी नहीं करना चाहते। प्रकृति सदा से ही मानव की सहचरी है। ईश्वर ने प्रकृति को मानव से पहले बनाया। प्रकृति सभी प्राणियों को अनेक सुख-सुविधाएँ-अन्न, जल, वर्षा, ताप, फल, फूल, वृक्ष आदि-प्रदान करके पालती है। मनुष्य जाति ने पृथ्वी पर अपने प्रादुर्भाव के समय से ही प्रतिकूल परिस्थितियों के साथ संघर्ष भी किया है। अपनी रक्षा के नए-नए तरीले खोजते हैं और अनेक क्षेत्रों में सफलता भी प्राप्त की है परन्तु कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं जहाँ मनुष्य का कोई उपाय नहीं चलता। उसे सब कुछ सहना ही पड़ता है। बाढ़ प्रकृति की विध्वंसक घटनाओं में से है जिसके सामने मनुष्य विवश हो जाता है और स्वयं अपनी आँखों के सामने अपने धन और जन की हानि होते देखता है। 

प्रलयकारी बाढ़ को देखकर प्रकृति की न्यारी लीला पर आश्चर्य होने लगता है। कभी तो धरती पानी की प्यास से व्याकुल होती है, भीषण गर्मी से भूमि फटने लगती है, दूर-दूर तक घटा दिखाई नहीं देती और कभी पानी इतना बरसता है कि नदियाँ उसे अपने किनारों में, आँचल में समेट नहीं पातीं। फिर तो नदियाँ मर्यादा के तटों को लाँघ कर ताडंव-नृत्य करने लगती हैं। वैसे तो गंगा, यमुना, गोमती, गोदावरी और ब्रह्मपुत्र का जल जड़-चेतन के लिए वरदान होता है लेकिन बाढ़ के दिनों में वही पानी अभिशाप बन जाता है। आँधी-तूफान की सी गति से बहता हुआ बाढ़ का पानी कितनी ही बस्तियों, कस्बों और नगरों को अपनी लपेट में ले लेता है। हजारों एकड़ भूमि जल की भेंट हो जाती है।

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नदी पाटों के निकट की भूमि का खेती के लिए तथा आवास के लिए उपयोग होने के कारण जलक्षेत्र घट रहा है। वनों की अनियंत्रित कटाई के कारण होने वाले भू-क्षरण से नदियों में गाद भर जाती है जिससे नदियों की गहराई कम हो जाती है और बाढ़ का पानी आस-पास के क्षेत्र में फैलकर विनाशकारी दृश्य उपस्थित कर देता है। साथ ही वर्षा ऋतु में जब पहाड़ों पर अत्यधिक पानी बरसता है तो वही पानी पहाड़ी ढलानों से बहता हुआ भीषण जलधारा के रूप में नदियों में जा मिलता है। नदियों की सीमा उनके किनारे होते हैं। पहाड़ों से आई हुई पानी की अत्यधिक मात्रा जब नदियों की सीमा में नहीं समा पाती तो वह नदियों के कगारों को तोड़ कर बाढ़ का रूप धारण कर लेती है। 

बाढ़ का पानी जहाँ-जहाँ तक फैलता है, वहाँ-वहाँ जलमय प्रलय अथवा समुद्र का सा दृश्य प्रस्तुत करता है। नदी के पानी का बहाव इतना तेज हो जाता है कि खड़ी फसलें नष्ट हो जाती हैं, कच्चे मकान ढहकर बह जाते हैं, पक्के मकान भी ढह जाते हैं, यहाँ तक कि गाँव के गाँव बाढ़ की भेंट हो जाते हैं। संचार और यातायात व्यवस्था पूरी तरह भंग हो जाती है। उन दिनों ऐसे स्थानों, विशेषकर गाँवों, की दशा बड़ी शोचनीय हो जाती है। चारों ओर त्राहि-त्राहि मच जाती है। नदियों का यह विनाशकारी दानवी रूप सभी कुछ हड़पने के लिए तैयार हो जाता है।

बाढ़ का आगमन विनाशकारी होता है। दिन में बाढ़ आने पर या पहले से कुछ अनुमान होने पर लोग अपने आवश्यक सामान के साथ सुरक्षित स्थानों पर शरण ले लेते हैं, परन्तु रात्रि में या अचानक आने वाली बाढ़ व्यक्तियों, पशुओं और घरों को एक साथ समेट लेती है। प्राण-रक्षा के लिए जनसमूह सदमे की सी अवस्था में इधर-उधर दौड़ने के लगते हैं। ऐसी दशा में घर और सम्पत्ति से अधिक मनुष्य प्राण बचाने का प्रयास करता है। चारों ओर वीरानगी के अतिरिक्त कुछ नहीं दिखाई देता। करोड़ों रुपए की सम्पत्ति नष्ट हो जाती है। स्थान-स्थान पर गड्ढों में जल भर जाता है। पीने का जल दूषित हो जाता है। बाढ़ समाप्त हो जाने पर जीवन निर्वाह के साधनों का सर्वथा अभाव हो जाता है। बाढ़ अपने साथ अनेक बीमारियों के कीटाणु भी छोड़ जाती है। मनुष्यों और पशुओं के लिए खाने-पीने की वस्तुओं की कमी हो जाती है।

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उत्तर-प्रदेश, बिहार, बंगाल, बांग्लादेश तथा आसाम में बाढ़ के कारण प्रतिवर्ष लाखों ग्रामवासियों का जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। बाढ़ की रोकथाम करने के लिए प्रान्तीय एवं केन्द्रीय सरकारें प्रयत्नशील हैं। वृक्षारोपण, बाँध, अतिरिक्त पानी के भण्डारण के लिए जलाशय (artificial lakes) आदि के व्यापक कार्यक्रम बाढ़ रोकने में सहायक सिद्ध हुए हैं। बाढ़ के दिनों में बाढ़ पीड़ित सहायता केन्द्रों में बाढ़-ग्रस्त लोगों की हर संभव सहायता की जाती है। इस दिशा में कुछ दानी संस्थाएँ और दानी व्यक्ति धन से तथा स्वयंसेवक तन-मन से सहायता कार्यों में जुट जाते हैं। परन्तु वास्तविक सहायता स्थानीय लोग ही दे सकते हैं।

बाढ़ का प्रकोप शांत होने पर जितनी जल्दी हो सके, पानी को पंपों द्वारा बाहर निकालना चाहिए। कीचड़ की सफाई भी आवश्यक है। सरकार को शीघ्र ही बाढ़ पीड़ितों की उचित चिकित्सा तथा बाढ़ के कारण अपना घर छोड़ने के लिए विवश व्यक्तियों के पुनर्वास की व्यवस्था करनी चाहिए। बाढ़-ग्रस्त लोगों की क्षतिपूर्ति कोई सरल कार्य नहीं है परन्तु पीड़ितों की यथासंभव सहायता अवश्य करनी चाहिए। ऐसी परिस्थितियों में ही व्यक्ति की पहचान होती है।

उपसंहार (Conclusion of Flood)

दोस्तों मुझे आशा है कि आपको हमारा लेख बाढ़ पर निबंध (Essay about flood) पढ़ कर अच्छा लगा होगा और आपके सभी प्रश्नों के उत्तर मिल गए होगें।

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