क्या आप जानते हैं Reflation क्या है? यानी की मुद्रा संस्फीति या संस्फीति क्या है? ऐसे बहुत से सवाल है जो अक्सर कई लोगों को परेशान करते हैं । आज हम लोग इस आर्टिकल में मुद्रा संस्फीति के बारे में जानेंगे इसके कारण और प्रभाव इससे किस प्रकार से हमारे Economy पर असर पड़ता है ।
तो आज हम लोग इस आर्टिकल में जानेंगे कि Reflation क्या है? What is Reflation in Hindi? (मुद्रास्फीति, मुद्रा संकुचन तथा मुद्रा संस्फीति में क्या अंतर है?) जिसका हमारी Economy में या फिर हमारे Financial Sector में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है । जिससे कि हमारे देश की Economy को ऊपर और नीचे ले जाया जा सकता है । Finance का नाम आने पर इसमें एक नाम Reflation का भी आता है । जिस प्रकार से Inflation, Reflation, Stagflation और Recession आता है । उसमे से एक नाम Deflation है जिसकी चर्चा विस्तृत रूप से आज हम लोग इस Article के माध्यम से करेंगे ।
Reflation क्या हैं (Reflation in Hindi)
सरकार जब कभी यह अनुभव करती है कि Deflation के कारण आर्थिक क्रियाएँ बंद हो गई हैं तब समाज के आर्थिक जीवन की सुरक्षा हेतु सरकार धीरे-धीरे Inflation करती है। इसे ही मुद्रा संस्फीति (Reflation) कहते हैं।
दूसरे शब्दों में, यह कहा जा सकता है कि नियंत्रित मुद्रास्फीति को ही संस्फीति कहा जाता है।
या,
“मंदी (Recession) को दूर करने के लिए जानबूझकर जो मुद्रास्फीति की जाती है उसे ही मुद्रा संस्फीति कहते हैं।”
“Reflation may be defined as inflation deliberately undertaken to relieve depression.”
या,
“अगर अर्थव्यवस्था को पूर्ण रोजगार की स्थिति पर पहुँचने के पूर्व किसी स्थिति पर मूल्य स्तर के उठाने के लिए मुद्रा (Money) की मात्रा में वृद्धि की जाती है तब वह मुद्रा संस्फीति होगी, मुद्रास्फीति नहीं।”
“If there are unemployed men and capital goods and if profits are low, then higher prices and incomes are essential, that is reflation not a inflation.”
इस प्रकार अर्थव्यवस्था को संतुलित करने के लिए जो नियंत्रित मुद्रास्फीति (Controlled inflation) की जाती है, उसे ही आधुनिक अर्थशास्त्री मुद्रास्फीति कहते हैं। मुद्रा संस्फीति और मुद्रास्फीति दोनों ही में Credit और मुद्रा(Money) की मात्रा में वृद्धि की जाती है। दोनों के प्रभाव से वस्तु मूल्यों में वृद्धि होती है, परन्तु मुद्रा संस्फीति तो हमेशा जानबूझकर Deflation के कारण बिगड़ी हुई स्थिति में सुधार करने के लिए की जाती है जबकि मुद्रास्फीति प्रायः परिस्थितिवश होती है। इससे आर्थिक परिस्थितियों के क्रमश: बिछड़ने का भय पैदा हो जाता है।
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मुद्रास्फीति एवं मुद्रा संस्फीति में अन्तर (Difference between Inflation and Reflation)
मुद्रास्फीति तथा मुद्रा संस्फीति दोनों ही स्थिति में अर्थव्यवस्था में होने वाले परिवर्तन की प्रवृत्ति एक-सी रहती है। दोनों स्थिति में मुद्रा की मात्रा में वृद्धि होती है और वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि होती है।
किन्तु, दोनों में कुछ आधारभूत अन्तर हैं जो निम्नलिखित हैं:
1.प्रारंभ
मुद्रास्फीति परिस्थिति के आधार पर होती है जिस पर Central bank तथा सरकार का नियंत्रण नहीं होता है, लेकिन मुद्रा संस्फीति का प्रारंभ Deflation की चरम सीमा से शुरू होता।
2. प्राकृतिक एवं ऐच्छिक मुद्रास्फीति प्राय
परिस्थितिवश होती है और इससे अर्थव्यवस्था क्रमश: बिगड़ती चली जाती है जबकि मुद्रास्फीति जानबूझकर Deflation से उत्पन्न स्थिति में सुधार लाने के लिए की जाती है।
3. उद्देश्य
मुद्रा-स्फीति का उद्देश्य एक साथ मुद्रा की मात्रा को बढ़ाना होता है जिससे मूल्य स्तर ऊंचा होता है। मुद्रास्फीति की कोई निश्चित सीमा नहीं होती है, जबकि मुद्रा संस्फीति का उद्देश्य मंदी को दूर करके मूल्य स्तर को मुद्रा की मात्रा में वृद्धि द्वारा ऊंचा करना होता है। उद्देश्य की पूर्ति के बाद मुद्रा की मात्रा में वृद्धि बंद कर दी जाती है।
4.परिणाम
मुद्रास्फीति के परिणाम घातक या नुकसानदेह हो सकते हैं और अर्थव्यवस्था असंतुलित हो सकती है। किन्तु मुद्रा संस्फीति से अर्थव्यवस्था में संतुलन की स्थिति उत्पन्न होती
5. नियंत्रण
मुद्रास्फीति पर नियंत्रण करना कठिन होता है। एक बार मुद्रास्फीति की स्थिति आ जाने के बाद स्फीति बढ़ती ही जाती है। किन्तु मुद्रा संस्फीति जानबूझकर की जाती है। अत: उसे एक निश्चित सीमा पर नियंत्रित किया जा सकता है।
6. मूल्य-वृद्धि की गति
मूल्य वृद्धि की गति मुद्रास्फीति की स्थिति में बहुत तेज होती है, लेकिन मुद्रा संस्फीति में मूल्य वृद्धि धीरे-धीरे होती है।
अन्त में, यह कहा जाता है कि मुद्रा संस्फीति देश की अर्थव्यवस्था के लिए लाभदायक तथा मुद्रास्फीति हानिकारक होती है।
मुद्रा अपस्फीति एवं मुद्रा संकुचन में अंतर (Difference Between Disinflation and Deflation)
मुद्रा अपस्फीति तथा अपस्फीति में समानता पायी जाती है। दोनों के ही अन्दर मुद्रा की मात्रा में कमी की जाती है और दोनों के ही कारण कीमतों में कमी हो जाती है, लेकिन इस समानता के होते हुए भी दोनों में महत्वपूर्ण भेद हैं, जो निम्नलिखित है
प्राकृतिक एवं ऐच्छिक अपस्फीति
ऐच्छिक तथा प्राकृतिक कारणों से उत्पन्न हो सकता है, जबकि मुद्रास्फीति हमेशा ऐच्छिक होती है, प्राकृतिक कारणों से नहीं। अगर किसी वर्ष देश में बहुत अधिक कृषि उत्पादन के कारण कीमत गिर जाती है तब देश में Deflation की दशा उत्पन्न हो जाती है, लेकिन यह संकुचन प्राकृतिक कारणों से होता है। Deflation एक निश्चित सरकारी नीति के कारण भी हो सकता है परन्तु मुद्रा अपस्फीति (disinflation) हमेशा निश्चित सरकारी नीति का ही परिणाम होती है। यह प्राकृतिक कारणों से उत्पन्न नहीं होती।
नीति को अपनाया जाना
मुद्रा अपस्फीति की नीति उस समय अपनाई जाती है जबकि मुद्रास्फीति उग्र रूप धारण कर लेती है। अर्थात् मुद्रा अपस्फीति की नीति मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने के लिए अपनायी जाती है जबकि Deflation की नीति का उपयोग मुद्रास्फीति से उत्पन्न होने वाली परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिए किया जाता है।
परिणाम (Effect)
Deflation का परिणाम देश में मन्दी होता है जबकि मुद्रा अपस्फीति से मूल्य स्तर सामान्य अवस्था में आ जाता है।
बेकारी की समस्या (Problem of unemployment)
Deflation के अन्तर्गत उत्पादन के घट जाने से देश में बेकारी की समस्या उत्पन्न हो जाती है। परन्तु मुद्रा अपस्फीति से इस प्रकार की कोई कठिनाई उत्पन्न नहीं होती है। इसका कारण यह है कि अपस्फीति अपनाते समय सरकार इस बात का ध्यान रखती है कि देश में बेरोजगारी न फैलने पाये। संक्षेप में कहा जा सकता है कि मुद्रा अपस्फीति से देश को लाभ होता है किन्तु Deflation से देश को हानि होती है।
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आज आपने क्या सीखा
दोस्तों मुझे आशा है कि आपको हमारा आर्टिकल मुद्रा संस्फीति क्या है? मुद्रास्फीति, मुद्रा संकुचन तथा मुद्रा संस्फीति में क्या अंतर है? के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी इसके लिए आपको और कहीं जाने की जरूरत नहीं है ।
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