अवमूल्यन क्या है | What is Devaluation in Hindi

अवमूल्यन क्या है? (What is Devaluation in Hindi) जिसका अंग्रेजी में अर्थ “Devaluation” होता है। यह नाम सुनते ही हमारे दिमाग में सबसे पहले यह बात आती है कि किसी भी चीज का Value गिराया जा रहा है या कम किया गया है परंतु इसके बारे में आपको विस्तारपूर्वक जानकारी होना आवश्यक है। इसलिए आज हमलोग इस आर्टिकल में अवमूल्यन के बारे में विस्तार से जानेंगे। इसके क्या लाभ है, इसके क्या हानि है, इसके उद्देश्य क्या है तो बिना समय बर्बाद किए चलिए शुरू करते हैं।

अवमूल्यन का इतिहास (History of Devaluation)

1947 में भारत के आजादी के बाद भारतीय रुपए का तीन बार अवमूल्यन किया गया। यहां अमूल्य 1949, 1966 और 1991 में किया गया था। जिसमें उन्हें 1947 में विनिमय दर 1 USD = 1 INR था, लेकिन आज आपको एक अमेरिकी डॉलर को खरीदने के लिए ₹75 के आसपास खर्च करने होंगे। मुद्रा के अवमूल्यन का अर्थ (Meaning of Devaluation) – “घरेलू मुद्रा के बाह्य मूल्य में कमी होना, जबकि आंतरिक मूल्य का स्थिर रहना होता है।” कोई भी देश अपने प्रतिकूल भुगतान संतुलन (Balance of Payment) को सही करने के लिए अपनी मुद्रा का अवमूल्यन करता है। यदि कोई देश प्रतिकूल भुगतान संतुलन (Balance of Payment) से जूझ रहा होता है तो वह इस स्थिति में वह अपनी मुद्रा का Devaluation करता है। जिससे निर्यात (export) सस्ता हो जाता है और आयात (Import) महंगा हो जाता है।

Devaluation Meaning in Hindi – अवमूल्यन होता है। जिसमे यह दो शब्दों से मिलकर बना है। De + Valuation जिसका अर्थ होता है किसी चीज के मूल्य में कमी आना।   

अवमूल्यन क्या है – Devaluation in Hindi 

किसी अन्य देश की मुद्रा (Money) या मुद्राओं के समूह की तुलना में किसी अन्य देश के पैसों के मूल्य को जानबूझकर नीचे की ओर गिराना अवमूल्यन (Devaluation) कहलाता है। जिन देशों में एक Fixed Exchange Rate और Semi-Fixed Exchange Rate होता है, वह इस मौद्रिक नीति (Monetary policy) उपकरण का उपयोग करते हैं।

देश की मुद्रा का मान विदेशी मुद्रा की मात्रा में मापा जाता है। जैसे कि भारत के रुपैया का तुलना डॉलर से किया जाता है। वर्तमान समय में 1 Dollar का मूल्य 75 Rupees के आसपास है।

मुद्रा के इकाई के बाह्य मूल्यों (Devaluation may be simply defined as the lowering of the external value का of the currency of a country.) अर्थात् यदि डालर का रूपये के रूप में मूल्य बढ़ा कर निर्यात (Export) किया जाये या रूपये का मूल्य डालर के रूप में कम कर दिया जाये तो इसे भारतीय रूपये अवमूल्यन (Devaluation of Currency) कहा जायेगा।

> Deflation क्या है? इसके प्रभाव और कारण क्या है?

> मुद्रा संस्फीति क्या है? What is Reflation in Hindi?

> बेसल मानदंड क्या है और इसके कितने प्रकार है?

अवमूल्यन के उद्देश्य (Objectives of Devaluation) 

इस प्रकार हैं – आयातों को  प्रोत्साहित कर निर्यातों को प्रोत्साहन देना। साथ ही विदेशी मुद्राओं (Foreign Currencies) की चोर बाजारी को रोकना और विदेशी निवेशकर्ताओं (Foreign Investors) को पूँजी निवेश हेतु प्रोत्साहित करना भी था। 

अवमूल्यन की सफलता की शर्ते (Conditions for the success of Devaluation) :

अवमूल्यन की सफलता की शर्ते निम्न हैं- 

(i) अवमूल्यन देश के प्रतिकूल भुगतान शेष (Adverse Payment Balance) को ठीक करने में तभी सहायक हो सकता है जबकि हमारी Exported Goods की माँग की लोच (Elasticity of Demand) इकाई से अधिक हो। 

(ii) अवमूल्यन के फलस्वरूप देश के आयात तभी कम होंगे जब आयातित वस्तुओं (imported goods) की माँग अधिक लोचदार हो।

(iii) अवमूल्यन के फलस्वरूप उत्पादन लागत व मूल्यों में वृद्धि नहीं होनी चाहिए अन्यथा निर्यातों में आशातीत वृद्धि नहीं होगी।

(iv) अवमूल्यन के पश्चात् निर्यातों में वृद्धि तभी संभव है जब देश में वस्तुओं का पर्याप्त उत्पादन हो और आन्तरिक माँग की पूर्ति करने के पश्चात् पर्याप्त निर्यात-योग्य अतिरेक (exportable redundancy) उपलब्ध हो।

(v) अवमूल्यन की सफलता के लिए यह भी आवश्यक है कि हमारे साथ-साथ अन्य देश भी अपनी मुद्रा का अवमूल्यन (Devaluation) करे अन्यथा निर्यातों में आशानुकूल वृद्धि नहीं होगी। 

(vi) अवमूल्यन के पश्चात् उन वस्तुओं का जिनका हम विदेशों में भारी मात्रा में आयात करते रहे हैं अपने देश में ही उत्पादन करने के लिए प्रयास किया जाना चाहिए।

(vii) अवमूल्यन का लाभ उसी देश को अधिक मात्रा में उपलब्ध होता है जिनके लिए अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार व विदेशी विनिमय (International Trade and Foreign Exchange) का महत्व अधिक हो। मुद्रास्फीति (Inflation) काल में अवमूल्यन होने पर वांछित परिणाम प्राप्त नहीं होंगे क्योंकि स्फीतिकाल में लोगों में संचय-प्रवृत्ति बढ़ जाती है और निर्यात योग्य अतिरेक कम हो जाता है।

अवमूल्यन के लाभ (Advantages of Devaluation)

  1. विदेशी खरीदारों के लिए निर्यात सस्ता और अधिक पारदर्शी हो जाता है इसलिए घरेलू मांग को बढ़ावा देता है और निर्यात के क्षेत्र में रोजगार सृजन का कारण बनता है।
  1. निर्यात के उच्च स्तर से चालू खाता घाटे (Current Account Deficit) में सुधार होना चाहिए यह महत्वपूर्ण है क्योंकि प्रतिस्पर्धा की कमी के कारण देश में एक बड़ा चालू खाता घाटा है।
  1. उच्च निर्यात और कुल मांग से आर्थिक विकास की उच्च दर हो सकती है।
  1. अवमूल्यन “Internal Devaluation” की तुलना में प्रतिस्पर्धात्मक को बहाल करने का एकदम हानिकारक तरीका है। आंतरिक अवमूल्यन कुल मांग को कम करके कीमतों को कम करने के लिए अब नीतियों पर निर्भर करता है। अब मूल्य समग्र मांग को कम किए बिना प्रतिस्पर्धात्मक को बहाल कर सकता है।
  1. मुद्रा के Devaluation के निर्णय के साथ Central Bank ब्याज दरों में कटौती कर सकता है क्योंकि अब उसे उच्च ब्याज दरों वाली मुद्रा को “Prop Up” करने की आवश्यकता नहीं है।

अवमूल्यन के हानि (Disadvantages of Devaluation)

  1. मुद्रास्फीति (Inflation): अवमूल्यन से मुद्रास्फीति होने की संभावना रहती है क्योंकि:

a. आयात अधिक महंगा होगा जिससे किसी भी Imported Goods या Material की कीमत में वृद्धि होगी।

b. शक्ल मांग (Face Demand) बढ़ेगी जिससे Demand Pull-Inflation होती है।

c. Firm Exporters के पास लागत में कटौती करने के लिए कम Incentive होता है क्योंकि वह Competitive था। जिसमे सुधार के लिए अवमूल्यन पर भरोसा कर सकते हैं। चिंता लंबी अवधि के अवमूल्यन में है क्योंकि Incentive में गिरावट के कारण उत्पादकता कम हो सकती है।

2. विदेशों में नागरिकों की क्रय शक्ति (Purchasing Power) को कम करता है जैसे विदेश में छुट्टी पर जाना अधिक महंगा हो जाता है।

3. वास्तविक मजदूरी में कमी होती है। कम वेतन वृद्धि की अवधि में एक अवमूल्यन जो आयात की कीमतों में वृद्धि का कारण बनता है। कई उपभोक्ताओं को और भी बुरा हाल होता है। 2007-2018 की अवधि के दौरान United Kingdom में यह एक ज्वलनशील मुद्दा था।

4. एक बड़ा और तेज अवमूल्यन International Investors को डरा सकता है। यह निवेशकों को सरकारी ऋण धारण करने के लिए कम इच्छुक बनाता है क्योंकि अवमूल्यन प्रभावी रूप से उनकी Holding के वास्तविक मूल्य को कम करता है परंतु कुछ मामलों में तेजी से अवमूल्यन पूंजी के उड़ान को गति प्रदान कर सकता है।

5. यदि उपभोक्ताओं पर कर्ज है तो विदेशी मुद्रा में बंधक अवमूल्यन के बाद, वे अपने ऋण चुकौती की लागत में तेज वृद्धि देखने को मिलेगा यह हंगरी में हुआ था। जब कई लोगों ने विदेशी मुद्रा में एक Mortgage निकाला था और अब मूल्य के बाद Euro मूल्य वर्ग के Mortgage का भुगतान करना बहुत महंगा हो गया था।

1966 में भारतीय रूपये का अवमूल्यन 

राष्ट्र की Economic Growth को ध्यान में रखकर जून 1966 में Finance Minister श्री शचीन चौधरी ने प्रात: 9 बजे भारतीय रूपये का 36.5 प्रतिशत Devaluation किया जिसके फलस्वरूप रूपये का स्वर्ण मूल्य 0.118516 Gram और डालर मूल्य 13.33 Cents रह गया। इस प्रकार रूपये के मूल्य में विदेशी मूल्य की तुलना में 36.5 की कमी हुई थी जब विदेशी मुद्रायें रूपये की तुलना में 57.5 प्रतिशत अधिमूल्यित हो गयी थी। 

भारतीय रूपये का अवमूल्यन बिना सोचे समझे उठाया गया कदम नहीं था बल्कि देश की में इस प्रकार की समस्यायें उत्पन्न हो गयी थी कि बिना अवमूल्यन किए उन्हें दूर नहीं किया मुद्रा प्रणाली जा सकता था।

> विश्व बैंक क्या है? इसके उद्देश्य और कार्य क्या-क्या है?

> अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष क्या हैं? What is IMF in Hindi?

> पत्र मुद्रा क्या है? सके कार्य,प्रकार और विशेषताएं क्या है?

अवमूल्यन के कारण (Reason of Devaluation)  

1. भारत का व्यापार संतुलन (Trade Balance) कई वर्षों से प्रतिकूल चल रहा था। जिसके कारण भारत के Foreign Exchange Fund में अत्यधिक गिरावट आ गयी थी। इसको सुधारने के लिए आयातों को घटाना और निर्यातकों को प्रोत्साहित करना आवश्यक था। अत: रूपये का अवमूल्यन किया गया। 

2. भारतीय बाजार में गत 10 वर्षों से वस्तुओं के मूल्यों में 80 प्रतिशत वृद्धि हो गयी थी जिनको कम करने के लिए सभी प्रयास असफल हो गये थे। तत्कालीन Finance Minister श्री शचीन वता चौधरी के शब्दों में मूल्यों को नीचे लाना संभव नहीं था। भारतीय माल के मूल्य ऊंचे होने के कारण उसे विदेशों में बेचना कठिन हो गया था। 

अत: भारतीय माल को विदेशी बाजार में सस्ता बनाने की Indirect Method निकाली गयी और रूपये का अवमूल्यन कर दिया गया। 

3. सरकार ने देश के निर्यातों को बढ़ाने के लिए अनेक उपाय किये। जैसे निर्यातकों को अधिक सहायता देना, निर्यातकों को कच्चे माल का आयात करने में सुविधा देना, निर्यात पर करों की छूट आदि प्रदान की, परन्तु संतोषप्रद परिणाम नहीं आये जिससे सरकार के समक्ष अवमूल्यन ही एक मात्र उपाय रह गया।

4. भारत की अर्थव्यवस्था की गिरती हुई दशा के कारण विदेशों से सहायता मिलने में कठिनाई उत्पन्न हो रही थी जिसके फलस्वरूप भारत की विकास संबंधी योजनाओं के संचालन में बाधा उत्पन्न हो रही थी। 

अत: विदेशी सहायता प्रापत करने के लिए रूपये का अवमूल्यन किया जाना उचित समझा गया।

5. भारतीय रूपये के अवमूल्यन का प्रमुख कारण स्वदेश में Foreign Capital के आयात को प्रोत्साहित करना तथा स्वदेशी पूँजी (Indigenous Capital) के निर्यात को हतोत्साहित करना था, जिससे एक ओर देश के Economic Development की गति तीव्र हो सके और दूसरी ओर Balance of Payment की प्रतिकूलता तथा Foreign Exchange संकट दूर हो सके।

अवमूल्यन के प्रभाव (Effects of Devaluation) 

भारतीय अर्थव्यवस्था पर अवमूल्यन के निम्नलिखित प्रभाव पड़े:

1. अवमूल्यन का उद्देश्य निर्यातों को बढ़ाना था परन्तु हमारे निर्यात बढ़ने की अपेक्षा कम हो गये। अवमूल्यन के पहले वर्ष में हमारे निर्यात 171.1 करोड़ डालर से घटकर 150.5 करोड़ डालर रह गये। निर्यात में कमी का मुख्य कारण विदेशों में हमारी वस्तुओं की माँग का लचीलापन ना होना, घरेलू बाजार का आकर्षक ना होना तथा निर्यात के लिए पर्याप्त मात्रा में वस्तुओं का उपलब्ध न होना था।

2. अवमूल्यन के कारण हमारे लिए आयातों के मूल्य 57.5 प्रतिशत बढ़ गये जिसके कारण आयातों को कम करना पड़ा। अवमूल्यन के पहले वर्ष में हमारे आयात 300.4 करोड़ डालर से घटकर 259.7 करोड़ डालर रह गये जिनके कारण भुगतान संतुलन में कुछ सुधार हुआ। यद्यपि अवमूल्यन ने हमारे आयातों को महंगा कर दिया जिसके कारण हमारी योजनाओं की विदेशी विनिमय (Foreign Exchange) की लागतं बढ़ गयी।

3. अवमूल्यन के फलस्वरूप हमारे देश की कीमतों में और अधिक वृद्धि हो गयी। अवमूल्यन से पहले अप्रैल 1966 में थोक मूल्यों का सूचकांक 176.4 था जो बढ़कर सितम्बर 1968 में 221.4 हो गया। इनके मुख्य कारण निम्न थे:-

(i) ऐसी वस्तुयें जिनके निर्माण में Imported कच्चे माल का प्रयोग होता था उनकी कीमतें बढ़ जाने से निर्मित वस्तु की कीमतों में वृद्धि हो गयी। 

(ii) कीमत में वृद्धि से निर्यात की जाने वाली वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि हो गयी। 

(iii) मूल्यों में इस प्रकार की वृद्धि का प्रभाव अन्य उपभोक्ता वस्तुओं पर भी पड़ा। महँगाई के साथ-साथ मजदूरी एवं महँगाई भत्ते में भी वृद्धि होती गयी। इस प्रकार मूल्य वृद्धि का प्रभाव धीरे-धीरे सम्पूर्ण व्यवस्था पर पड़ गया।

4. अवमूल्यन के कारण विदेशों से आने वाले पूँजीगत व कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि होने से देश में आर्थिक विकास की योजनाओं की लागत बढ़ गयी। अधिकांश योजनाओं का विदेशी विनिमय व्यय इतना बढ़ गया कि पर्याप्त मात्रा में आर्थिक सहायता नहीं मिलने के कारण उनको पूरा करने में कठिनाई हो गयी। परिणामत: देश के प्रगतिशील आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न हो गयी।

5. अवमूल्यन से भारतीय रूपये का मूल्य विदेशी मुद्रा में कम हो गया जिसके कारण अब विदेशी मुद्रा के बदले में अधिक भारतीय मुद्रा देना होती थी। इसलिये रूपये में विदेशी ऋणों का भार पहले की अपेक्षा अधिक हो गया।

6. उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि अवमूल्यन का भारतीय अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इसमें न केवल देश के निर्यात हतोत्साहित हुए और विकास की योजनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा बल्कि देश के आन्तरिक मूल्य भी प्रभावित हुए जिसने देश की अर्थव्यवस्था को झकझोर दिया। 

उचित तो यह होता कि मुद्रा के अवमूल्यन को प्रभावशाली बनाने के लिए तथा इसके प्रभावों से अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए कुछ उपयुक्त कदम उठाये जाते, तब ही मुद्रा का अवमूल्यन देश के सर्वांगीण विकास में सहायक होता।

7. विदेशी वस्तुओं (Foreign Goods) के मूल्य बढ़ने से विदेशी सहायता की क्रय शक्ति पहले की अपेक्षा बहुत कम रह गयी। अत: विकास परियोजनाओं को पूरा करने के लिए अधिक विदेशी सहायता की आवश्यकता होने लगी।

> भूमि विकास बैंक क्या है? इसके कार्य और प्रकार क्या-क्या है?

> Credit Instrument क्या हैं? इसके कितने प्रकार होते हैं?

अवमूल्यन से होने वाले विजेता और हारने वाले

अवमूल्यन के फायदे और नुकसान के बारे में सोचने का एक तरीका यह सोचना भी है कि इससे किसे फायदा होता है और किसे नुकसान होता है?

WinnersLosers
1. निर्यातक1. उपभोक्ता जो आयात खरीदते हैं।
2. घरेलू पर्यटन उद्योग2. विदेश में छुट्टियां मनाने वाले निवासी
3. निर्यात उद्योग में नौकरी पाने वाले श्रमिक3. आयातित कच्चा माल खरीदने वाली फर्में
4. आर्थिक वृद्धि बढ़ सकती है 4. निश्चित आय/मजदूरी वाले लोग जो मुद्रास्फीति को तेजी से बढ़ते हुए देखते हैं।
5. चालू खाते का घाटा सुधरना 5. विदेशी निर्यातक/पर्यटक उद्योग
Frequently Asked Questions
भारतीय रुपए का अवमूल्यन कब किया गया था?

उत्तर: भारतीय रुपये का अवमूल्यन 1949, 1966 और 1991 में किया गया था। लेकिन 1991 में, इसे दो चरणों में किया गया – 1 जुलाई और 3 जुलाई को।

भारतीय रुपए का अवमूल्यन कितनी बार किया गया?

उत्तर: भारतीय रुपए का अवमूल्यन 3 वर्ष में 4 बार किया गया।

“डॉलर का अवमूल्यन” वाक्यांश का क्या अर्थ है?

उत्तर: डॉलर का अवमूल्यन का अर्थ सोने (Gold) की आधिकारिक कीमत में बढ़ोतरी है।

एक मुद्रा की कीमत दूसरे मुद्रा के संदर्भ में क्या मानी जाती है?

उत्तर: विदेशी विनिमय दर (Foreign Exchange rates)

वह बाजार जहां राष्ट्रीय मुद्राओं का एक दूसरे के लिए कारोबार होता है उसे क्या कहा जाता है?

उत्तर: विदेशी मुद्रा बाजार (Foreign Exchange Market)

विदेशी वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि को किस रूप में जाना जाता है?

उत्तर: अवमूल्यन

विदेशी वस्तुओं के मूल्य में कमी को किस रूप में जाना जाता है?

उत्तर: पुनर्मूल्यांकन (Revaluation)

आज आपने क्या सीखा?

मुझे उम्मीद है कि आप कोई मेरी आर्टिकल अवमूल्यन क्या है? (What is Devaluation in Hindi) जरूर पसंद आई होगी। मेरी हमेशा से यह कोशिश रहती है कि Readers को अवमूल्यन की परिभाषा के विषय में पूरी जानकारी दी जाए। जिससे उन्हें किसी दूसरे Sites या इंटरनेट में उस Article के बारे में खोजने की जरूरत ना हो।

इससे आपके समय की बचत भी होगी और एक ही जगह पर सभी Information आपको मिल जाएंगे। यदि आपके मन में इस आर्टिकल को लेकर कोई Doubt है या आप चाहते हैं कि इसमें कुछ सुधार होना चाहिए तो आप हमें Comment करके बता सकते हैं।

यदि आपको यह पोस्ट अवमूल्यन (Devaluation) किसे कहते हैं पसंद आया या कुछ सीखने को मिला तो आप अपनी उत्सुकता को जाहिर करने के लिए इस पोस्ट को आप अपने Social Network जैसे कि Facebook, Google+ अथवा Twitter इत्यादि पर शेयर करें।

इन्हें भी पढ़ें:

Leave a Comment