हेलो दोस्तों, आज हमलोग इस लेख में विज्ञापन पर निबंध हिंदी में पड़ेंगे जो कि आपको Class 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 व अन्य competitive examination जैसे कि SSC, UPSC, BPSC जैसे एग्जाम में अत्यंत लाभकारी साबित होंगे। विज्ञापन पर निबंध (Advertisement essay in Hindi) के अंतर्गत हम विज्ञापन से संबंधित पूरी जानकारी को विस्तार से जानेंगे इसलिए इसे अंत तक अवश्य पढ़ें।
विज्ञापन की शुरुआत | 1870 में |
विज्ञापन की शुरुआत किसने की | विजय कुलश्रेष्ठ और प्रतुल अथैया ने |
पहला विज्ञापन कहां प्रकाशित हुआ | अमेरिका में |
पहली विज्ञापन एजेंसी | वाल्नी पाँल्मर, अमरीका, 1870 में |
Short Essay on Advertisement in Hindi
विज्ञापन-विज्ञापन-विज्ञापन! जहाँ नज़र घुमाओ वहीं विज्ञापन। टी.वी. पर विज्ञापन, अख़बारों में विज्ञापन, पत्रिकाओं में विज्ञापन ! उफ़ ! मैं तंग आ गई हूँ इन विज्ञापनों को देख-देखकर। बाजार में जाओ या गली में निकलो, दीवारों पर विज्ञापन चिपके हुए नज़र आते हैं। परंतु एक प्रश्न उठता है कि इन विज्ञापनों का आज के औद्योगिक युग में औचित्य क्या है?
ये विज्ञापन आज के औद्योगिक युग में बहुत महत्त्व रखते हैं- व्यापारी के नज़रिए से भी और आम जनता के दृष्टिकोण से भी। विज्ञापन व्यापारी के हाथ में एक पुर्जे के समान है जिसे वह अपनी चीजें बेचने के लिए इस्तेमाल करता है। वह लोगों को आकर्षित करने के लिए टी. वी. पर भी विज्ञापन देता है और अख़बारों तथा पत्रिकाओं में भी अपनी वस्तु या सेवा की चर्चा करवाता है। लोग इन्हें देखकर आकर्षित हो ही जाते हैं और इस प्रकार व्यापारियों की अधिक बिक्री होने लगती है। अत: ऐसे पाते हैं व्यापारी विज्ञापनों से लाभ।
हमें भी इन विज्ञापनों से लाभ ही होता है। इन विज्ञापनों के माध्यम से हमें बाज़ार में आई हुई नई चीज़ों के बारे में जानकारी मिलती रहती है। विज्ञापनों से लोगों को अलग-अलग कम्पनियों की वस्तुओं में तुलना करने का भी मौक़ा मिल जाता है तथा वह उस वस्तु को लेना पसंद करते हैं जिससे कि उन्हें कम दाम में अच्छी क्वालिटी मिले। विज्ञापनों के माध्यम से अलग-अलग कम्पनियों में प्रतियोगिता सी होने लगती है। जो एक कम्पनी करती है वही दूसरी भी करती है।
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विज्ञापनों से मध्यम वर्ग के लोगों को भी लाभ होता है क्योंकि वह तुलना करके उचित वस्तु खरीदने का ले सकते हैं। परंतु साथ ही विज्ञापनों से इसी मध्यम वर्ग का शोषण भी होता है। विज्ञापनों पर होने वाला सम्पूर्ण खर्च इस वर्ग के उपभोक्ताओं पर ही परोक्ष रूप में पड़ता है। वस्तु की लागत बढ़ जाने से उसके मूल्य में भी वृद्धि हो जाती है। वह तरह-तरह के विज्ञापनों को देखकर आकर्षित तो हो जाता है, परंतु उसके पास अधिक पैसे नहीं होते इसलिए उसे अपनी बहुत सी इच्छाओं को कुचलना पड़ता है, या फिर दिखावे के लिए वह इन विज्ञापनों को देखकर बड़ी कठिनाई से महँगी वस्तु खरीदता है। ऊँचे-वर्ग या निम्न-वर्ग को इन विज्ञापनों से कोई फर्क नहीं पड़ता- वे वही ख़रीदते हैं जो उन्होंने मन में सोचा होता है।
दैनिक आवश्यकता वाली वस्तुओं के विज्ञापन से वस्तु के मूल्य में जो वृद्धि होती है उसका आर्थिक बोझ निम्न-वर्ग पर भी पड़ता है। उदाहरण के तौर पर नमक, आटा, चावल जैसी अत्यावश्यक वस्तुओं का विज्ञापन ऐसा ही है।
दूरदर्शन विज्ञापनों को प्रदर्शित करने का सबसे अच्छा माध्यम है जिससे लोग आकर्षित हो जाते हैं। कुछ विज्ञापन ऐसे होते हैं जो कि व्यक्ति के मन को झकझोर देते हैं। ऐसे पाँच विज्ञापन जिनसे मैं बहुत प्रभावित हुई, इस प्रकार हैं : सर्वप्रथम मुझे ‘ब्रिटेनिया‘ का विज्ञापन अत्यन्त प्रिय लगता है। उसमें एक छोटा सा तीन-चार साल का बच्चा इतनी प्यारी अठखेलियाँ करता है कि मन मुग्ध हो जाता है और मुझे उसका यह वाक्यांश –’टिंग-टिंग-ट-टिंग‘ भुलाए नहीं भूलता।
दूसरा मुझे ‘आयुर्वेदिक कॉनसेप्ट’ का विज्ञापन बहुत आकर्षित करता है। कुछ लड़के-लड़कियाँ होटल में बैठकर खाना खा रहे होते हैं और अंग्रेज़ी में बातें कर रहे होते हैं। उसी समय एक वृद्धा स्त्री उनके पास वाली मेज़ पर आकर बैठती है तो वे सब दिखावा करने के लिए अंग्रेज़ी में ऊँचे स्वर में बातें करने लगते हैं परंतु वह वृद्धा स्त्री भी अंग्रेज़ी में बातें करना आरम्भ कर देती है और उन्हें Ayurvedic Concept के बारे में पूरी जानकारी दे देती है और यह बहुत ही प्रभावशाली दृश्य होता है।
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तीसरा मुझे ‘स्प्राइट’ का विज्ञापन अच्छा लगता है जिसमें वह अंत में बोलता है कि ‘दिखावों पर मत जाओ, अपनी अक्ल लगाओ।’ उसका मतलब होता है कि ‘कोका कोला’ और ‘पैप्सी’ में जो फ़िल्मी हस्तियाँ आती हैं, उनके दिखावे के कारण उन्हें मत ख़रीदो बल्कि अपनी अक्ल लगाकर वस्तु खरीदो। चौथा मुझे ‘ईनो’ का विज्ञापन बहुत प्रिय है जिसमें एक आदमी ससुराल जाकर, वह भी प्रथम बार, कुछ नहीं बोल पाता है और इसलिए ससुराल वाले उसे इतना खिला देते हैं कि उसके पेट में गैस हो जाती है और ईनो पीने से उसे तुरन्त आराम मिलता है।
अन्त में, पतंजलि का “हनी के नाम से जो मनी की लूट हो रही है उससे बचिए” वाला विज्ञापन भी कम शब्दों में अपनी बा कह कर मन पर प्रभाव छोड़ जाता है। आज का युग विज्ञापन का युग है और अगर हम चाहें भी तो उनसे भाग कर कहीं नहीं जा सकते।
Frequently Asked Questions
उत्तर: विज्ञापन का
उत्तर: इंटरनेट का
उत्तर: Google Ads और Facebook Ads का
उत्तर: ऑनलाइन विज्ञापन करके
उपसंहार (Conclusion of Advertisement )
दोस्तों मुझे आशा है कि आपको हमारा लेख विज्ञापन पर निबंध (Essay about Advertisement) पढ़ कर अच्छा लगा होगा और आपके सभी प्रश्नों के उत्तर मिल गए होगें।
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