बैंकों के राष्ट्रीयकरण का इतिहास क्या है पूरी जानकारी हिंदी में

बैंकों के राष्ट्रीयकरण का इतिहास क्या है? What is the History of Nationalization of Banks?

19 जुलाई 1969 ई० में देश के 14 प्रमुख Banks के राष्ट्रीयकरण कर लेने का निर्णय लिया गया। इसी निर्णय के आधार पर उसी दिन रात्रि में राष्ट्रपति ने यह अध्यादेश (Ordinance) जारी किया कि भारत सरकार ने देश के 14 प्रमुख भारतीय Scheduled Banks का राष्ट्रीयकरण कर लिया है। राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और लक्ष्यों के अनुकूल Economy के विकास की आवश्यकताओं की अपेक्षाकृत और अच्छी तरह पूरा करने के उद्देश्य से यह कदम उठाया गया। इस अध्यादेश के अनुसार उन सभी Banks का राष्ट्रीयकरण किया गया है जिनकी जमा पूंजी जून 1969 में 60 करोड़ रुपये से अधिक थी।

Nationalized Banks के नाम

जिन 14 Banks का राष्ट्रीयकरण किया गया उनके नाम निम्न प्रकार हैं:

1. Central Bank of India

2. Bank of India 

3. Punjab National Bank.

4. Bank of Baroda.

5. United Commercial Bank. 

6. Canara Bank. 

7. United Bank of India.

8. Dena Bank. 

9. Syndicate Bank.

10. Union Bank of India. 

11. Allahabad Bank.

12. Indian Bank. 

13. Bank of Maharashtra.

14. Indian Overseas Bank. 

अध्यादेश की मुख्य बातें

अध्यादेश के अनुसार राष्ट्रीयकरण किये गये उपर्युक्त सभी Banks को Board of directors के अधीन कर दिया गया है। प्रत्येक Banks के संचालन के लिये Chief Executive Officer नियुक्त किया जाएगा। तत्काल उन Banks के वर्तमान निदेशकों को कानून के अनुसार मुआवजा दिया जायेगा। Central Government मुआवजे की राशि निर्धारित करने के लिये न्यायाधिकारों की नियुक्ति करेगी। इन Banks का संचालन आज से 25 वर्ष पूर्व की Nationalized Life Insurance Companies के साथ किया जाएगा और उसके लिये निगम की स्थापना होगी।

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने वक्तव्य में कहा कि “बड़े Banks के राष्ट्रीयकरण का निर्णय समाजवादी समाज के लक्ष्य की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है। हमारा देश गरीब और पिछड़ा है। अत: यह जरूरी है कि अर्थव्यवस्था कुछ खास मोर्चों पर, जहाँ से विकास के काम के लिये साधन उपलब्ध होते हैं, सरकार का अधिकार हो। आज देश के किसानों में नया उत्साह है। लोग छोटे-छोटे उद्योग-धन्धे शुरू करना चाहते हैं। Banks के राष्ट्रीयकरण से हम उन्हें सहायता करने में समर्थ होंगे।”

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अध्यादेश के विरुद्ध Written आवेदन पत्र

राष्ट्रीयकरण के अध्यादेश के विरुद्ध दिल्ली के सर्वोच्च न्यायालय में दो Written आवेदन पत्र आये। न्यायालय में उनकी स्वीकृति देकर 22 जुलाई, 1969 को Banks के राष्ट्रीयकरण पर अंतरिम निषेधादेश जारी किया और Central Government को यह । आदेश दिया कि नया सलाहकार बोर्ड संगठित नहीं किया जाय और न वर्तमान चेयरमैनों को बदला जाए। 10 फरवरी, 1970 को सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय द्वारा Banks के राष्ट्रीयकरण संबंधी कानूनों को अवैध घोषित कर दिया

14 बड़े Banks का पुनः राष्ट्रीयकरण

14 फरवरी, 1970 को राष्ट्रपति श्री वी वी गिरि ने एक अध्यादेश द्वारा देश के 14 बड़े Banks का पुन: राष्ट्रीयकरण करने की घोषणा की। इसे 19 जुलाई, 1969 ई० से लागू समझा जाएगा और उस समय इन Banks के जो अध्यक्ष थे उन्हें ‘पुनः Custodian बना दिया गया। मुआवजे की योजना के अन्तर्गत राष्ट्रीयकृत Banks के प्रतिष्ठानों को अपने अधिकार में लेने के लिये जितनी रकम अदा करने की व्यवस्था की गयी वह निम्न प्रकार हैं:

1. सेन्ट्रल बैंक ऑफ इण्डिया – 17 करोड़ 50 लाख रुपया 

2. बैंक ऑफ इण्डिया लिमिटेड -14 करोड़ 70 लाख रुपया

3. पंजाब नेशनल बैंक लिमिटेड – 10 करोड़ 20 लाख रुपया 

4. बैंक ऑफ बड़ौदा लिमिटेड – 8 करोड़ 40 लाख रुपया

5. युनाइटेड कमर्शियल बैंक लिमिटेड – 8 करोड़ 30 लाख रुपया 

6. केनरा बैंक लिमिटेड – 3 करोड़ 60 लाख रुपया 

7. युनाइटेड बैंक ऑफ इण्डिया लि० -4 करोड़ 20 लाख रुपया

8. देना बैंक लिमिटेड – 6 करोड़ 60 लाख रुपया 

9. सिण्डिकेट बैंक लिमिटेड -3 करोड़ 60 लाख रुपया 

10. युनियन बैंक लिमिटेड -3 करोड़ 10 लाख रुपया 

11. इण्डियन बैंक -2 करोड़ 30 लाख रुपया

12. इण्डियन ओवरसीज बैंक लिमिटेड – 2 करोड़ 50 लाख रुपया

13. बैंक ऑफ महाराष्ट्र लिमिटेड – 4 करोड़ 30 लाख रुपया

14. इलाहाबाद बैंक लिमिटेड – 3 करोड़ 10 लाख रुपया

6 अन्य व्यापारिक Banks का राष्ट्रीयकरण

15 अप्रैल 1980 को भारत के राष्ट्रपति ने एक विशेष अध्यादेश “The Banking Companies Acquisition and Transfer of Undertaking Ordinance, 1980 जारी करके 14 मार्च 1980 को जिन Banks के पास 200 करोड रुपये या इससे अधिक जमा था उनका राष्ट्रीयकरण कर दिया। अतएव The Andhra Bank Limited, Corporation Bank Limited, The New Bank of India Limited, The Oriental Bank of Commerce Limited, The Punjab and Sind Bank Limited and The Vijaya Bank Limited का राष्ट्रीयकरण कर लिया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य प्राथमिक क्षेत्रों तथा कमजोर वर्ग को साख सुविधाएं उपलब्ध कराना है।”

राष्ट्रीयकृत Banks की प्रगति

19 जुलाई, 1969 को जब Banks का राष्ट्रीयकरण किया गया था तब उसकी कुल 3,761 शाखाएँ थीं, उनकी कुल जमा की राशि 2742 करोड़ रुपया थी तथा ये 1,744 करोड़ रुपया के ऋण एवं अग्रिम दिए हुए थे। दो वर्षों की अवधि में अर्थात् जून 1969 से मई 1971 तक में 4969 करोड़ रुपये से बढ़ाकर इनकी जमा 6019 करोड़ रुपया हो गयी जो 56 प्रतिशत वृद्धि बताती है। पुन: 31 दिसम्बर, 1971 को इनकी कुल जमा की राशि  करोड़ रुपये हो गयी तथा उनकी कुल शाखाओं की संख्या 12,033 थी और ऋण एवं अग्रिम की राशि 4,340 करोड़ रुपया थी। पुन: 31 दिसम्बर 1972 को 14,630 शाखाएँ 8,146 करोड़ रुपया जमा तथा 5,398 करोड़ रुपये ऋण हो गये।

संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि राष्ट्रीयकरण के बाद गाँवों तथा शहरों में बैंकिंग की आदत में वृद्धि हुई है, जिससे इनकी आर्थिक स्थिति अधिक सुदृढ़ हुई है। लघु उद्योगों को समय-समय पर आर्थिक सहायता भी विभिन्न Banks से प्राप्त होती रही है। जिसमें राष्ट्रीयकृत Banks का सबसे अधिक अनुपात रहा है। 20 जून, 1972 को व्यापारिक Banks ने लघु उद्योगों को 1,25,067 इकाइयों को 596.53 करोड़ रुपये ऋण दिये थे। इसमें राष्ट्रीयकृत Banks ने 50 प्रतिशत स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया ने 39 प्रतिशत तथा अन्य Banks ने 11 प्रतिशत ऋण दिये थे।

मुआवजा देने के संबंध में यह निर्णय किया गया कि मुआवजा नगद अथवा Central Government की Security के रूप में दिया जाएगा। यदि कम्पनी नगद धन चाहेगी तो यह तीन वार्षिक किस्तों में मिलेगा और हर वर्ष 19 जुलाई 1969 से 4 प्रतिशत ब्याज दिया जायेगा। यदि कम्पनी Security चाहेगी तो 10 वर्ष अथवा 40 वर्ष की Security पर 41 प्रतिशत एवं 57 प्रतिशत ब्याज दिया जाएगा। सभी कंपनियों को यथाशीघ्र यह सूचित करना पड़ेगा कि उसे मुआवजा में नगद धन चाहिए अथवा सरकारी प्रतिभूतियां। 

कंपनी की ओर से सूचना मिलने के 60 दिनों के भीतर पहली किस्त दे दी जाएगी। यदि कोई कम्पनी चाहे तो उसे जमा पूंजी की 75 राशि अंतरिम मुआवजा के रूप में 60 दिनों के भीतर दे दी जा सकेगी। मुआवजे की कुल राशि लगभग 85 करोड़ रुपये होगी। अत: राष्ट्रीयकरण के बाद Banks की प्रगति इस प्रकार हुई है:

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1. शाखाओं का विस्तार 

20 जून, 1969 को भारत के बैंक कार्यालयों की कुल संख्या 8,187 थी। मई 1991 में यह बढ़कर 60190 हो गयी। वस्तुत: शाखा विस्तार की दिशा में जो प्रगति राष्ट्रीयकरण के बाद देखने को मिलती है वह बैंकिंग विकास के इतिहास में अद्वितीय है।

2. जमा राशि की वृद्धि

नियोजित आर्थिक विकास के फलस्वरूप शहरी एवं ग्रामीण दोनों क्षेत्रों की आय में वृद्धि हुई और साथ ही बचत करने की क्षमता भी बढ़ गयी। इन बचतों को एकत्रित करने में राष्ट्रीयकृत Banks को अपेक्षाकृत अधिक सफलता मिली है। जहाँ 1969 में जमा पूंजी 4,665.2 करोड़ रुपये थी वह बढ़कर सितम्बर 1992 में 234640 करोड़ रुपया हो गयी। स्पष्ट है कि राष्ट्रीयकरण के बाद इसमें अब तक कई गुणा वृद्धि हुई है।

3. कृषि क्षेत्रों में अधिक शाखा

Banks के राष्ट्रीयकरण के बाद से कृषि साख की मात्रा में बहुत अधिक वृद्धि हुई है तथा ग्रामीण क्षेत्रों में बैंक के खातों की संख्या में भी वृद्धि हुई है। कृषि साख की मात्रा में तीन गुनी एवं ग्रामीण बैंक खातों की संख्या में आठ-गुनी वृद्धि राष्ट्रीयकरण के बाद से हुई है। राष्ट्रीयकरण से पहले इन Banks की कुल साख का केवल पांच प्रतिशत भाग कृषि को प्राप्त हो पाता था। यह अनुपात अब बढ़कर दस प्रतिशत से भी अधिक हो गया है।

4. लघु उद्योगों को ऋण सुविधाएँ

राष्ट्रीयकरण से पहले उद्योगों को कुल Banks की साख का केवल 8.7 प्रतिशत ही प्राप्त होता था। पिछले पाँच वर्षों में (जून 1984 तक) यह प्रतिशत बढ़कर लगभग 15 हो गया।

5. देशी व्यापार को प्रोत्साहन

राष्ट्रीयकरण से पहले निर्यात व्यापार के लिए इन Banks द्वारा दी जाने वाली साख की मात्रा की तुलना में अब पाँच वर्षों बाद लगभग दोगुनी धनराशि निर्यात के लिए साख के रूप में दी जा रही है। छोटे व्यापारियों एवं खुदरा व्यापारियों को पहले की अपेक्षा अधिक राशि ऋणों के रूप में दी जा रही है।

6. प्रोफेशनल एवं स्वयं नियोजित व्यक्तियों की सहायता

इस क्षेत्र में इन Banks ने प्रशंसनीय कार्य किया है। अनेक डॉक्टरों, तकनीशियनों एवं छोटे-मोटे शिल्पियों को राष्ट्रीयकृत पूरा किया है।

इसी प्रकार इन्हें दी जाने वाली साख की मात्रा जो कि पहले केवल दो करोड़ रुपया थी अब बढ़कर Banks द्वारा पहले की अपेक्षा बहुत अधिक ऋण दिये गये हैं। इसमें लगभग दस गुनी वृद्धि हुई है। लगभग बीस करोड़ रुपये से भी कुछ अधिक हो चुकी है।

7. अग्रगामी बैंक योजना (Lead Bank Scheme)

यह योजना भारत के विभिन्न जिलों में बैंक शाखाओं के प्रसार एवं कृषि साख में वृद्धि के उद्देश्य से रिजर्व बैंक की शाखाओं द्वारा प्रारम्भ की गयी है। प्रत्येक जिले के लिए एक बैंक को अग्रगामी बैंक (Lead Bank) नियुक्त किया है और इसे उस जिले में कृषि एवं ग्रामीण विकास के लिए आवश्यक बैंक साख में वृद्धि करने का दायित्व सौंपा गया है। राष्ट्रीयकृत Banks ने प्राय: सभी राज्यों में यह दायित्व भली प्रकार

8. निक्षेपों में वृद्धि (Increases in Deposits)

राष्ट्रीयकरण के बाद से इन Banks ने केवल पाँच कार्यालय के प्रसार में ही सफलता प्राप्त नहीं की है। बल्कि बैंक निक्षेपों की धनराशि में भी वृद्धि करके जनता की बचत को विनियोग के लिए गति प्रदान की है।

9. लीड Banks (Lead Bank) की स्थापना

Banks के राष्ट्रीयकरण के बाद लीड बैंक योजना को चालू किया गया। गाडगिल स्टडी ग्रूप (Gadgil Study Group) की सिफारिश पर सार्वजनिक क्षेत्र के प्रत्येक बैंक को देश के कुछ जिलों में लीड बैंक (Lead Bank) का कार्य करने का अधिकार सौंपा गया। ये बैंक अपने जिलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएँगे तथा अन्य Banks सहकारी Banks इत्यादि के लिए सामंजस्य स्थापित करेंगे। देश के विभिन्न जिलों में ग्रामीण स्तर पर 238 लीड Banks की स्थापना हो चुकी है। किन्तु इन Banks ने ग्रामीण साख तथा आर्थिक विकास में बहुत सराहनीय कार्य नहीं किया है।

10. रोजगार में वृद्धि एवं लाभ

राष्ट्रीयकृत Banks ने विभिन्न क्षेत्रों को ऋण देकर बेरोजगारी रोका है तथा रोजगार में वृद्धि की है। सड़क एवं जल यातायात, लघु उद्योग तथा छोटे-मोटे व्यापारियों को ऋण देकर इसने रोजगार में वृद्धि की है। जून, 1969 में इस प्रकार का ऋण 30 करोड़ रुपये था। जो अप्रैल 1976 में बढ़कर 543 करोड़ रुपये हो गया।

11. ग्रामीण और अर्द्ध शहरी क्षेत्रों में बैंकिंग सुविधाओं के विस्तार

Banks के राष्ट्रीयकरण के बाद एक महत्वपूर्ण कार्य यह हुआ कि Banks की शाखाओं का विस्तार ग्रामीण क्षेत्रों में हुआ है। जून 1969 में Banks की ग्रामीण शाखाओं का प्रतिशत 22.4 था जो अप्रैल 1969 में बढ़कर 40 प्रतिशत हो गया।

12. Banks द्वारा दिया जाने वाला अग्रिम में भी काफी वृद्धि हुई है। जून, 1969 में उस अग्रिम की कुल मात्रा 3609 करोड़ रुपये थी जो सितम्बर 1992 में बढ़कर 128643 करोड़ हो गयी।

इस प्रकार राष्ट्रीयकरण के बाद राष्ट्रीयकृत Banks ने निस्संदेह पर्याप्त प्रगति की है, किन्तु इसके बावजूद बैंकिंग सम्बन्धी सेवाओं के वितरण या क्षेत्रीय विषमता में अभी तक बहुत कमी नहीं हुई है। परिणामस्वरूप आज भी भिन्न-भिन्न राज्यों में बैंकिंग सम्बन्धी सेवाओं का वितरण एक समान नहीं है।

Regional Rural Bank

राष्ट्रीयकरण के बाद Commercial Bank भी ग्रामीण साख के क्षेत्र में काफी अच्छी भूमिका निभा रहे हैं। जून 1961 तक व्यावसायिक Banks द्वारा कृषि को प्रत्यक्ष ऋण के रूप में केवल 54 करोड़ रुपये की रकम दी गयी थी जो दिसम्बर 1974 में बढ़कर 540 करोड़ रुपये हो गयी। इस प्रकार व्यावसायिक Banks द्वारा दिये जाने वाले साख में पाँच वर्षों में प्राय: 10 गुनी वृद्धि उत्साहजनक अवश्य है। 

किन्तु Commercial Banks द्वारा दिये गये कुल साख का यह 7 प्रतिशत भाग ही है। राष्ट्रीयकरण के बाद व्यावसायिक Banks ने ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर शाखाओं की स्थापना की है। इस प्रकार ऐसा अनुमान किया जाता है कि कुल ग्रामीण साख की आवश्यकता का प्राय: तिहाई भाग ही सांस्थानिक साख का है। 

किन्तु वर्तमान समय में विशेषत: कृषि क्षेत्र में नये तकनीकी के प्रयोग के कारण साख की समस्या के गुणात्मक तथा परिमाणात्मक दोनों ही दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। भारतीय किसान अब पिछड़ेपन के कुचक्र से निकलने के लिए दृढ़ संकल्प हैं, अतएव ऐसी स्थिति में केवल वित्त के अभाव से इस मार्ग में कोई बहुत बड़ी बाधा नहीं उपस्थित होनी चाहिए इसी बात को ध्यान में रखकर ग्रामीण क्षेत्रों को साख की अधिकाधिक सुविधा प्रदान करने के उद्देश्य से प्रादेशिक ग्रामीण Banks की स्थापना पर जोर दिया जा रहा है।

Conclusion

दोस्तों मुझे आशा है कि आपको हमारा आर्टिकल बैंकों के राष्ट्रीयकरण का इतिहास क्या है? के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी ।

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