क्या आप जानते हैं बेसल मानदंड क्या है? What is Basel Norms in Hindi? ऐसे बहुत से सवाल हैं जो अक्सर कई लोगों को परेशान करते हैं और आज हम लोग इस Article में Basel Standard के बारे में जानेंगे उसके कारण और प्रभाव इससे किस प्रकार से हमारे Economy पर असर डालती है ।
तो आज हम लोग इस Article में जानेंगे कि Basel क्या है? What is Basel in Hindi? इसका इतिहास और यह कितने प्रकार के होते हैं? बेसल का हमारी बैंकिंग से किस प्रकार संबंध है और इसका प्रभाव हमारी अर्थव्यवस्था से किस प्रकार पड़ता है । यहां तक की Banking में जो भी Supervision बनाए जाते हैं । वह बेसल के आधार पर बनाए जाते हैं इसके बारे में आज हम लोग इस आर्टिकल में विस्तार से जानने का प्रयास करेंगे ।
बेसल मानदंड का इतिहास
Reserve Bank Of India ने बेसल कमेटी के द्वारा 1988 में आरम्भ किया गया। इसे बेसल समझौते 1988 के नाम से भी जाना जाता है। Capital adequacy मापन से सम्बन्धित Risk asset ratio Indian Banks के लिए 1992 में शुरू किया। विश्व के अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं की तरह भारत में भी बेसल I मानदंडों को वर्ष 1999 में अपनाया गया। बेसल I मानदंडों के अपनाने का प्रत्यक्ष असर भारत के Scheduled commercial Banks पर देखा गया। इन Bank की गैर-निष्पादक परिसंपत्तियों (Non-performing assets) यानी NPA कुल साख का वर्ष 1997-98 के 8.1 प्रतिशत से गिरकर वर्ष 2003-04 में 2.9 प्रतिशत आ गया।
यहाँ तक कि वित्तीय वर्ष 2003-04 में NPA में निरपेक्ष में गिरावट दर्ज की गई। Basel 1 की सफलता से आशान्वित होकर ही Reserve Bank Of India ने भारत में Financial institutions के लिए बेसल II मानक अपनाने पर बल दिया।
Reserve Bank Of India के अनुसार भारतीय Bank Basel III के अनुसार नए पूँजी नियमों को आसानी से लागू कर लेंगे। Reserve Bank Of India के मुताबिक भारतीय Banks में कुल पूँजी और Risky assets का अनुपात 30 जून, 2010 को 11.7 प्रतिशत था जबकि Basel III नियमों के अनुरूप इसे 10,5 प्रतिशत ही होना चाहिये। भारतीय Banks के पास Tier I पूँजी 9 प्रतिशत है जबकि Basel III नियमों के मुताबिक 8.5 प्रतिशत आवश्यक है। हालांकि कुछ भारतीय Bank Basel III नियम के पालन के क्रम में पूँजी की कमी की स्थिति का सामना कर सकते हैं।
बेसल मानदंड क्या है? What is Basel Norms in Hindi?
Bank Supervision पर बेसल कमेटी (Basel Committee on Bank Supervision-BCBS) समझौतों का एक सेट जो Capital Risk, Market Risk तथा Operational Risk के संदर्भ में Banking regulators पर सिफारिशें देती हैं। मानदंडों के मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि Financial Institution अपनी Liabilities व अप्रत्याशित घाटों की पूर्ति के लिए पर्याप्त पूँजी अपने पास सुरक्षित रखें।
बेसल मानदंड की आवश्यकता क्यों पड़ी?
वर्ष 1980 के दशक में यह महसूस किया गया कि अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक जोखिमों के समय मुख्य International Banks का capital ratio चिंताजनक स्थिति में पहुंच गया। 10 Central banks के गवर्नरों ने अपनी Banking System में पूँजी मानक के क्षरण को रोकने के लिए विचार-विमर्श किए। विचार-विमर्श का मुख्य विषय था Banks की बैलेंस शीट पर जोखिम।
Committee के सदस्यों में इस बात को लेकर सहमति थी कि अंतर्राष्ट्रीय Banking System की स्थिरता को मजबूती प्रदान करने के लिए एक Multinational Contract तैयार की जाये। इसी के मद्देनजर दिसम्बर 1987 में पूँजी मापन प्रणाली (Capital measurement system) पर एक दस्तावेज जारी किया गया जिसे बेसल पूँजी अभिसंविदा (Basel Capital Accord) भी कहा गया। इसे बेसल मानक भी कहा गया। अभी तक तीन बेसल मानक प्रकाशित किये गये हैं। अन्तिम मानक प्रथम दो का संशोधित, उन्नत व प्रासंगिक मानक है।
> Endorsement क्या है और इसके कितने प्रकार होते है?
> Indian Bill Market क्या हैं? What is Indian Bill Market in Hindi?
> Attachment Order क्या हैं? What is Attachment Order in Hindi?
Basel I क्या है?
Bank supervision पर Basel committee द्वारा Financial institutions द्वारा Credit risk को कम करने हेतु अपने पास रखे जाने वाली Minimum capital requirement बेसल I मानदण्ड हैं। वे मानदण्ड पहली बार वर्ष 1988 में रखे गये थे। इसके तहत अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कारोबार करने वाले Financial institutions को अपनी Risk Weighted Assets के बराबर या न्यूनतम 8 प्रतिशत Tier I व Tier 2 पूँजी अपने पास रखना अनिवार्य किया गया।
उदाहरण के तौर पर यदि किसी Bank की Risk weighted assets 100 मिलियन डॉलर है तो उसे न्यूनतम 8 मिलियन डॉलर की पूँजी अपने पास रखनी होगी। इसका उद्देश्य मुख्यतः Financial institutions में जमाकर्ताओं के धन को सुरक्षित रखना था।
बेसल I में Banks की संपदा को कितने जोखिम श्रेणियों में विभाजित किया है?
बेसल I के तहत् Banks की संपदा को पाँच जोखिम श्रेणियों में विभाजित किया गया था ।
- 0% जोखिम : Cash, राष्ट्रों की Central bank व Govt. Loan तथा किसी OECD देशों का कर्ज
- 0%, 10%, 20% या 50% : सार्वजनिक क्षेत्रक ऋण
- 20% : Development Bank Loans, OECD Bank Loans, OECD Securities, Company Loans, Non-OECD Bank Loans (एक वर्ष तक वाला) व Non OECD public sector loans
- 50% : Housing loan
- 100% :Real estate, private sector loans, non-OECD bank loans (एक वर्ष से ऊपर का)
Basel II क्या है?
बेसल II बेसल मानदण्ड का दूसरा चरण है। जिससे Basel norms meaning समझने में आसानी होगी। यह 26 जून, 2004 को जारी किया गया और वर्ष 2006 से लागू करने का प्रावधान किया गया। वर्ष 1990 के दशक की कुछ आर्थिक घटनाओं ने यह सिद्ध कर दिया कि Banks के समक्ष जोखिम केवल साख या कर्ज से ही नहीं जुड़ा हुआ है वरन Operational risk के अलावा मूल्यों, Interest rates या Exchange rates में उतार-चढ़ाव के कारण हुए घाटों से भी जुड़ा हुआ है। इसी को ध्यान में रखते हुए Basel 2 मानदण्ड जारी किये गये। जहाँ बेसल एक Credit risk पर केन्द्रित था । वहीं बेसल II का उद्देश्य Financial institutions द्वारा अलग रखे जानी वाली पूँजी के लिए मानक तैयार करना व उसका Regulation करना था।
Banks को निवेश व कर्ज देने की अपनी गतिविधियों के साथ जुड़े जोखिमों के मद्देनजर पूँजी अलग रखना जरूरी होता है।
बेसल II मानदण्ड किन कारको पर प्रभाव डालता है?
बेसल II मानदण्ड मुख्यतः तीन कारकों पर प्रभाव डालता है। ये हैं- Capital adequacy, Supervisory Evaluation व Market discipline । Basel Committee इन तीनों कारकों को जोखिम प्रबंधन के तीन स्तम्भ मानती है। बेसल II मानदण्ड की Capital adequacy स्तम्भ के तहत् Banks के लिए 8 प्रतिशत की Capital adequacy अनुपात Capital Adequacy Ratio (CAR) या Capital to Risk Weighted Assets Ratio (CRAR) बनाए रखना अनिवार्य है।
Bank जोखिम कितने प्रकार के होते है?
सामान्यतः Bank तीन प्रकार की जोखिमों का सामना करते हैं:
- Credit Risk
- Operational Risk and
- Market Risk
Supervisory Review के तहत के बेसल II Standard यह सुनिश्चित करना चाहता है कि Bank न केवल अपने जोखिमों की भरपाई के लिए अपने पास पर्याप्त पूँजी रखे वरन अपने जोखिमों की निगरानी व प्रबंधन के क्रम में बेहतर जोखिम प्रबंधन तकनीक का उपयोग व विकास भी करें।
Market Discipline Banks पर अपनी Banking Business को सुरक्षित, सुदृढ़ व प्रभावी तरीके से संचालन करने का निर्देश देता है। Banks के अपनी पूँजी, जोखिम Description या Exposure देना अनिवार्य है ताकि बाजार के भागीदार उस Bank की Capital adequacy का अनुमान लगा सके।
Basel III क्या है?
वर्ष 2008 की अमेरिकी Sub prime crisis व global crisis के परिप्रेक्ष्य में Basel 3 मानक तैयार किया गया। जिसमे Basel Banking को आसान भाषा में समझने का प्रयास किया गया है। जिसमे की Basel 2 में किसी खास Bank के Risks and regulations को केंद्र में रखा गया था पर Economic Crisis को देखते हुए पूरी आर्थिक व्यवस्था की financial stability पर Basel III मानक के केंद्र में रखा गया है।
इसके तहत Banks को Risk asset weight का 4.5 प्रतिशत Common equity (Basel II standard में यह 2 प्रतिशत था) व 6 प्रतिशत Tier-I Capital (बेसल II में यह 4 प्रतिशत था) अपने पास रखने होंगे। Banks को अपने पास 2.5 प्रतिशत का Excess capital buffer भी रखना होगा। जो Bank इस Buffer को नहीं रख पाएंगे उन्हें Share repurchase, dividend व Bonus Payment Restrictions सामना करना पड़ेगा।
हाल के संकट ने यह प्रदर्शित किया कि Banks को आर्थिक विकास के दौरान Capital buffers बनाने चाहिये। यह Buffer Banks को Financial Crisis के दौरान अपने घाटों की भरपाई में मदद करते हैं। इसके अतिरिक्त Banks को 3 प्रतिशत का Minimum leverage ratio भी रखना होगा। साथ ही Banks को Liquidity coverage अनुपात का भी पालन करना होगा।, जिसके लिए उन्हें 30 दिन की कठिन अवधि का सामना करने के लिए पर्याप्त मात्रा में High quality assets बनाये रखने की जरूरत होगी। एक Fixed fund ratio जनवरी 2018 से अस्तित्व में आएगा जिसका मकसद Banks की Balance Sheet में नगदी से जुड़ी Long term एवं and structural त्रुटि दूर करने की जरूरत होगी।
Basel III criteria एक जनवरी, 2013 से लागू हो गया और इन्हें जनवरी, 2019 तक पूरा कर लिया गया ।
> Open market operation क्या है?
> Financial Inclusion क्या है?
Basel III के असफलता के मुख्य कारण
- यह मानक के क्रियान्वयन के लिए Banks को दी जा रही लम्बी अवधि National regulators के लिए सिरदर्द के रूप में देखा जा रहा है।
- इसके निर्देश Basel II की तुलना में अधिक कठिन हैं। Basel II Banks को वर्ष 2008 की Economic Crisis से नहीं बचा पाया जो कि वर्ष 1929 की financial crisis के बाद की सबसे बड़ी मंदी थी।
- यह Banks को अपने पास तीन गुना अधिक High quality capital रखना अनिवार्य करता है, पर इसका समय व विषय वस्तु में अभी भी गहन कमियाँ हैं जो सुधारों की प्रभावशीलता को दबा सकती है।
- Basel III standard के सभी मानदण्ड वर्ष 2019 तक पूरे किये जाने हैं जो पर्यवेक्षकों एवं उसके राजनीतिक नेतृत्व के समक्ष Banking Sector में पर्यवेक्षण का वही संवेग बनाये रखने पर चुनौती प्रस्तुत करेगा। संदेह यह भी है कि Global crisis की यादें धुंधली हो जाने पर Banking Sector अत्यधिक रिटर्न प्राप्ति के लिए लामबंद हो सकते हैं जिससे Basel III मानक का क्रियान्वयन खटाई में पड़ सकता है।
Basel III में पूंजी पर्याप्तता प्रतिशत का क्या योगदान है?
पूंजी पर्याप्तता प्रतिशत (Capital Adequacy Percentage) की गणना करते वक्त की जाने वाली deductions में बदलाव भी किये गये हैं। इस बदलाव से भी Indian Bank प्रभावित हो सकते हैं। एक प्रस्तावित दिशा-निर्देश के मुताबिक कटौती योग्य कटौती तभी की जा सकती है जब वे समन्वित स्तर से मूल पूँजी से 15 प्रतिशत अधिक होते हैं या एकल स्तर पर 10 प्रतिशत से बढ़ जाते हैं। वैसे इससे Indian Banks के प्रभावित होने की संभावना नहीं है क्योंकि Reserve Bank Of India के दिशा-निर्देश के अनुसार सभी अनुमान्य कटौतियों की जाती हैं।
Basel III में Core Capital से 100 प्रतिशत कटौती का प्रस्ताव है जो कि Reserve Bank Of India द्वारा जारी निर्देशों, Tier I पूँजी से 50 प्रतिशत व Tier 2 पूँजी से 50 प्रतिशत कटौती से अधिक कड़ा प्रस्ताव है।
Basel III standards के अनुपालन का मतलब है भारतीय Banks द्वारा विनियामकीय पूँजी अनिवार्यता में बढ़ोत्तरी। मानक के अनुसार Minimum base capital को बढ़ाकर 4.5 प्रतिशत करना है। इसके अलावा 2.5 प्रतिशत की Buffer पूँजी भी जरूरी है। इसका मतलब है कि Banks को 7 प्रतिशत से 9.5 प्रतिशत की पूंजी का भंडार हालांकि पहले से ही Indian Bank 6 प्रतिशत की Capital adequacy अनुपात रखे हुए है। पर एक ओर जहाँ निजी व भारत में संचालित Foreign Bank का मूल पूँजी अनुपात 9 प्रतिशत के आसपास है वहीं Public sector banks की मूल पूँजी अनुपात इससे काफी कम है।
Public sector banks जो कि Banking Sector की संपदा में 70 प्रतिशत से अधिक का योगदान करते हैं और जो उत्पादक क्षेत्र कों के Financing के प्रमुख स्रोत हैं, वे Basel III मानक के पालन के पश्चात् कुछ संयम का सामना करेंगे। चूँकि सार्वजनिक क्षेत्र के इन Banks में सरकार की हिस्सेदारी 51 प्रतिशत से अधिक है, ऐसे में Bank बाजार से स्वतंत्र रूप से पूँजी भी नहीं उठा सकते। कुछ Banks में तो सरकार की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत से भी अधिक है। सरकार के सामने एक विकल्प इन Banks का Recapitalization है।
Basel III के लिए RBI द्वारा जारी किये दिशा-निर्देश क्या है?
Reserve Bank Of India ने 30 दिसम्बर, 2011 को भारत में Basel III Norms लागू करने हेतु प्रारूप दिशा-निर्देश जारी किये। प्रारूप दिशानिर्देशों पर 15 फरवरी, 2012 तक राय मांगी गई। प्रारूप के अनुसार यदि सब कुछ ठीक रहा तो, भारत में Banking Regulation से सम्बन्धित Basel III मानक 1 जनवरी, 2013 से लागू होंगे जबकि इसका पूर्णतया क्रियान्वयन 31 मार्च, 2017 से किया जाएगा।
प्रारूप दिशा-निर्देश की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
- कॉमन इक्विटी Tier I पूँजी, Risk Weighted Assets-RWAs का न्यूनतम 5.5% होना चाहिए।
- Tier I capital risk weighted assets का कम से कम 7% होना चाहिए।
- Total capital risk weighted assets का कम से कम 9% अवश्य होना चाहिए।
- Common Equity के रूप में Capital protection buffer risk भारांश आस्तियों का 2.5% होना चाहिए।
इसे 31 मार्च, 2014 और 31 मार्च, 2017 के बीच लागू किया जाएगा। ऐसे साधन जो कि Regulatory capital instruments के योग्य के बीच नहीं होंगे उन्हें 1 जनवरी, 2013 से 31 मार्च, 2022 के बीच चरणबद्ध ढंग से हटा दिया जाएगा। उम्मीद है आपको Basel 3 meaning अच्छी तरह से समझ में आ गया होगा।
Tier 1 Capital क्या है?
Tier I Capital इस शब्द का इस्तेमाल Banks की Capital adequacy को दर्शाने के लिए करता है । Tier I Banks की केन्द्रीय या मुख्य पूँजी होती है जिसमें शामिल Disclosed reserves Equity capital वह Invested money है जिसे सामान्य Business process में Investors को पुनर्भुगतान नहीं की जाती है। Tier I सर्वाधिक विश्वसनीय पूँजी मानी जाती है।
Tier 2 Capital क्या है?
यह भी Banks की Capital adequacy का ही द्योतक है। यह Banks की Secondary capital होती है जिसमें Undisclosed reserves, Repurchase Stores General Provisions, Hybrid Instruments, Subordinated Debt इत्यादि आते हैं। Subordinate term debt Unsecured debt या वैसा Loan है जो अन्य की दावों की तुलना में कम प्राथमिकता वाला होता है। Undisclosed reserves के तहत कोई Bank लाभ अर्जित करता है पर वह उसको सामान्य लाभ के रूप में नहीं दर्शाता है। वैसे Instrument को Hybrid instrument कहा जाता है जिनमें कर्ज व Shareholders equity, दोनों की विशेषताएँ निहित होती हैं।
capital adequacy से संबंधित Basel II Switzerland के 20 शहर के नाम पर के मानकों का निर्धारण जून 2004 में किया गया । इसके अनुसार ऐसे Indian Bank को जो भारत से बाहर कार्य कर रहे हैं तथा Foreign Bank जो भारत के भीतर कार्यरत हैं उन्हें Reserve Bank of India के अनुसार 31 मार्च 2008 तक Basel II में सुझाए गए ।
credit risk के संबंध में Standard education तथा Behavioral risk के संबंध में संकेतक प्रयोग कम Indicator approach अपनाना आवश्यक होगा अन्य सभी Commercial banks को wsl 2 में सुझाए गए इन प्रत्यय गमों को 31 मार्च 2009 के पहले अपना अनिवार्य होगा उल्लेखनीय है कि RBI के अनुसार सभी Indian Banks ने यह मानक प्राप्त कर लिया है ।
कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न (Frequently Asked Question)
Basel किस शहर में स्थित है?
उत्तर: बेसेल Switzerland के एक शहर का नाम है ।
वर्तमान समय में Basel का कौन सा Norms लागु है?
उत्तर: वर्तमान समय में Basel III Norms Latest है ।
Basel का Headquarter कहाँ है?
उत्तर: Basel का Headquarter Switzerland में है क्योंकि Basel Standard नाम स्विट्जरलैंड में बसे एक शहर के नाम पर रखा गया है ।
RBI में Basel III मानदंड क्या हैं?
उत्तर: यह Banking Sector के साथ Regulation, Supervision and Risk Management में सुधार के लिए Design किया गए सुधारों के सेट पर एक International Regulatory Agreement है ।
बेसल III के तीन स्तंभ कौन से हैं?
उत्तर: Minimum Capital Requirement, Supervisory review Process और Market Discipline।
हमें बेसल III की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर: यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि बैंक सावधानी से कार्य करें ताकि वित्तीय और आर्थिक तनाव से संबंधित स्थितियों से निपटने की उनकी क्षमता में सुधार हो, जिससे उन्हें पारदर्शिता बढ़ाने और तरलता में सुधार करके एक बहुत बड़ा पूंजी आधार बनाए रखने में मदद मिले ।
बेसल III में leverage ratio क्या है?
उत्तर: इसे पूंजी माप के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसे प्रतिशत के रूप में व्यक्त जोखिम माप से विभाजित किया जाता है।
बेसल II के Third Pillar के रूप में किसे जाना जाता है?
उत्तर: Market Discipline
बेसल III के तहत minimum total capital ratio का RWA कितना % है?
उत्तर: 9%
Banking Supervision पर बेसल समिति किसकी banking super authorities द्वारा स्थापित की गई थी?
उत्तर: 10 देशों के समूह के Central Bank Governors
NSFR का पूर्ण रूप क्या है?
उत्तर: Net Stable Funding Ratio
बेसल II Framework कितने Pillars पर आधारित है?
उत्तर: बेसल II Framework तीन Pillars पर आधारित है ।
आज आपने क्या सीखा
दोस्तों मुझे आशा है कि आपको हमारा आर्टिकल बेसल मानदंड क्या है और इसके कितने प्रकार है? (What is Basel Standard in Hindi) के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी इसके लिए आपको और कहीं जाने की जरूरत नहीं है ।
यदि आपके मन में इस Article को लेकर कोई Doubt है या आप चाहते हैं कि इसमें कुछ सुधार होना चाहिए तब इसके लिए आप नीचे Comment लिख सकते हैं आपकी इन्हीं विचारों से हमें कुछ सीखने और कुछ सुधारने का मौका मिलेगा ।
यदि आपको यह लेख अच्छा लगा हो इससे आपको कुछ सीखने को मिला हो तो आप अपनी प्रसन्नता और उत्सुकता को दर्शाने के लिए कृपया इस पोस्ट को Social Networks जैसे कि Facebook, Google+, Twitter इत्यादि पर Share कीजिए ।
इन्हें भी पढ़ें:
- Indian Bill Market क्या हैं? What is Indian Bill Market in Hindi?
- Attachment Order क्या हैं? What is Attachment Order in Hindi?
- Credit Instrument क्या हैं? इसके कितने प्रकार होते हैं?
- Open market operation क्या है? What is Open Market Operation in Hindi?
Bahut hi detail me samjhaya Gaya hai exilanente
Thank U